चतुर्वेद | Chaturved

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chaturved by योगीन्द्रनाथ - Yogindranath

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about योगीन्द्रनाथ - Yogindranath

Add Infomation AboutYogindranath

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१७ बंठ कर उनकी इम्तजारी. करना मुनासिब है; लेकिन. दाता किए लौट कर नहीं आये | अब में दो सो पश्चास रुपयेका मालिक बन बठा। में थोड़ी देरके बाद वहाँसे उठ कर इसी स्त्रीके पास आया और कदा,--' में तुझे एक सो रुपये दूगा तू अपनी कन्याके साथ मेर। विवाह कर दै “| इसपर उसको सासने पहलेकी तरह चिढला कर कहा,--- “यह बूढ़ा कूठ बोलता है | तू पहले केवल पश्चास रुपये देना चाहता था | मेंने बड़े कष्ट ले तुमसे रुपये वसूल किये थे » । मोपेने विरक्त होकर कहा,--“तू अपने अपमानकोी बातों को क्यों प्रकर कर रही? उस रुत्रीनें कहा ;--“महाशय | आप यह क्यो भूल रहे हैं, कि में एक विधवा हूं ? क्‍या में प्रति सप्ताह वुछ के नामपर दों आना दान नहं करती ! यह सङ कासे आयगा ? ^“ “(फिर कुछ बोलनेपर जुर्माना होगाः मौपेने यह सुचना देकर अपराधीकों थोड़ेमें अपना वक्तव्य समाप्त करने को कहा। वह कहने लगा,--'मैंने इसकों सो रुपये सथा इसकी कन्याकों एक सोसेका कंकण दिया। इसके तीन दिन बाद हमलोगों का विवा हो गया ° | यहाँपर मोपेने पूछा,--“ तो कया बह तुभ प्यार करती थी. अपराधी इसका उत्तर देना ही चाहता था, कि उसे गेक कर उसकी विधवा खासने कहा,-- ' रूपये के द्वारा इसने मे टी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now