हिंदी उपन्यास - साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन | Hindi Upanyaas Sahitya Ka Saanskritik Addhyayan

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Hindi Upanyaas Sahitya Ka Saanskritik Addhyayan by रमेश तिवारी - Ramesh Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६] सबसे प्राचीन तथा साथ हो व्यापक भी दै । टायलर महोदय कहते है--'वह्‌ ( संस्कति या सभ्यता ) जटिल तत्व है, जिसमें ज्ञान, नीति, कानून, रीति-रिवाज़ों तथा दूसरी उन योग्यताओं और आदतों का समावेश है, जिन्हें मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के नाते प्राप्त करता है” इसी प्रकार लिटन ने संस्कृति को (सामाजिक विरासत! कहा है*। लावी के मत में संस्कृति समस्त सामाजिक परम्परा है तो हसेंकोविट्स मनुष्य के समस्त सीखे हुए व्यवहारो को ही संस्कृति मानने के पक्ष में है । अर्थात्‌ वे सब चो जो मनुष्य के पास हैं, वे चीज़ें जो वे करते हैं और वह सब जो वे सोचते हैं, संस्कृति ह° । संस्कृति की उपयुक्त परिभाषाएँ यथार्थ अनुभव को अपेक्षा कल्पनात्मक सृजन- शीलता से अधिक निकट हैं। भले ही इनका महत्व इस सम्बन्ध में स्वीकार किया जाय, लेकित इनमें यथार्थ अनुभव के अभाव को घोषित किये बिना नहीं रहा जा सकता। वस्तुतः नरविज्ञान का स्वरूप भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं कहा जा सकता । नरविज्ञान एक ऐसा शस्त्र है, जो आदमी और पशु के धरातल को अलग करके आदमी को उसकी सम्पूर्ण समग्रता के साथ समझने का प्रयत्त करता है। वहु आदमी की समग्र क्रियाओं का अध्ययन करता है तथा उसके अनुसार आदमी की सभी तरह की क्रियाएँ अध्ययन का विषय बन सकती हैं । किनन्‍्हों विशिष्ट कार्यों के चुनाव पर इसका बल नहीं है । क्रेबर ने नरत्रिज्ञान की इसी प्रवृत्ति को देखकर उसे समस्त संस्कृति का अध्ययन माना है, सब युगों की संस्कृति, समस्त सामग्री, उसके सब विभाग और सभी पहलुओं का अध्ययन 1 कहने की आवश्यकता नहीं कि नरविज्ञान का यह दृष्टिकोण कितना शिथिल और सपाट है। वस्तुतः नरविज्ञान समाजश्ास्त्रीय अध्ययन तो प्रस्तुत करता है, पर उसकी दृष्टि वैज्ञानिक नहीं है। साथ ही उसका दृष्टिकोण मूल्यांकनपरक भी नहीं है । वह्‌ विभिन्न सामाजिक अवस्थाओं का दतिहास भर देकर अपना दायित्व रामाप्त मान तेता है, जव कि सभ्यता के इतिहास में बिना सुल्यांकत के हम कोई बात आगे ने १. ई० टायलर ; 'प्रिमिदि पृण १। २. ए० एल० क्रेबर : एन््रापालाज्ञी' नवीन संस्करण (लखन १६४२), ए० २४२ । ३. ए० एल० क्रबर : एन््रापालाज्ी' नचोन संस्करण (लन्दन १६४८}, प° २५२ | ४. हसंकोविटूस : भन एण्ड हि वकस ' (अत्फरेड ए० नाफ, १६४६), प० १७॥ ` ५. एन्साइक्लोपीडिया आफ सोशल सायस्सेज्ञ, भाग ३-४-पखहवा प्रकाशन (मैकमिलन कम्पनी १६६३), पृु० ११। ` टिव कल्चर भाग १, चतुर्थं संर्करण ( लम्दन १६०३ }),




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