एक हज़ार वर्ष बाद | Ek Hajar Warsh Baad

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Ek Hajar Warsh Baad by काका गाडगील - Kaka Gadgil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জজ एक हज़ार वर्ष बाद আর गिरनार अबूच्या पहाडासी; ” जिसका मतलब है कि पति काठियावाड को चले गये, गिर्नार और आबू के पहाड मे बसते रहे | कवि तो आबू ओर गिरनार दो पवतो को एक पंक्ति में लाया है, किन्तु इन दोनों गे अ्रन्तर बहुत है। कविता का वास्तविक अथ यह है कि मराठा वीरों ने काठिया- वाड को जीत कर गिरनार तक मोर्चा लगाया था, अपनी वीर पत्नियों को देश मे छोड़कर वे विदेश मे विजय कमाते-कमाते ग्रिरनार तक पहुच गये थे और वहा उन्होंने अपनी विजय-पताका फहराई थी । इस पक्तिं को मे मन ही मन गाता रहा। इसके शज्ञार, वीर रस, लज्जत और समाविष्ट भावना को मन मे सोचता-सोचता मँ तद्रूप हो गया। ये सब भावनाएं अब समझ लीजिए पार्थिव रूप लेने लगी । मेरी नजर के सामने वायुयान के बदले पचकल्याणी श्रगलख घोड़ा खडा है, ऐसा मालूम होने लगा। खादी पहने हुए सरदार को मैने बख्तर पहन सिर पर लोहे का टोप लिये ओर हाथ में हथियार लिये हुए सेनापति के रूप मे देखा सवत्र हथियार बन्द सिपाही नजर आये। दक्षिण बाह ओर दक्षिण ऑख स्पदन करने लगे । कुछ शुभ होने वाला है, ऐसी सूचना दैने लगे। अब मे हरहर महादेव की घोषणा करके आगे बढ़ने वाला ही था कि इतने मे कनंल साहब मेरे पास आये ओर बोले - ““जामनगर आ गया ” । मै स्वप्न जगत से वास्तविक ससार मे श्राया | इतने में हमारा हवाई जहाज जमीन पर उतर और उसकी आवाज होने से हमारा खप्न समाप्त हो गया | हवाई श्रड्दे पर फौज खडी थी। सलामी देने के बाद जामसाहब की गाडी में हम बेंढे ओर उनके प्रासाद मे गये। जलपान हुआ ओर उसके बाद हम मोटर में शहर की तरफ चले । मानों सब शहर रास्तो पर खडा है, इतनी भीड़ थी | जगह-जगह द्वार बने थे। “हिन्द विजयी हो”, ऐसे-ऐसे फलक स्वर्णाक्षरों में लिखि हुए जगह-जगह नजर




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