सती पार्वती | Sati Parvati

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Sati Parvati by राधे श्याम कथावाचक - Radhe Shyam Kathavachak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) - सती पावती मूषन के मप, भावभरे, माम्यवान भीम, भुजन के भय भावी भोति भाजती रहे । वीरन के वीर, वीरसेन, वीरभद्र, वीर, वीरता की बीरा वीथी-बीथी बाजती रहे । इन्द्र--आज के उत्सव मे ग्रायः सभी देवताओं के दर्शन पाये; परन्तु यह नहीं समझ में आया कि भगवान शङ्कर अभी तक क्यों नहीं आये ? ब्रह्मा--हाँ, में भी यही सोर्च रहा हूँ। नारद--( स्वगत ) और में भी यही सोच रहा हैं :-- सदा शिव तो सदा शिव हैं, निरंजन धाम है उनका । जह्य पर मोह-लोला हो, वहाँ क्या काम है उनका ॥ दच्तु--पिताजी, मेरी राय में तो शइझुर इस उत्सव में आयेंगे ही नहीं । ब्रह्मा--क्‍्यों ? दक्ष--क्‍यों कि उन्हें मेरा प्रजापति बनना नहीं भाता। किसी भी आत्मसेवी को पराया सुख नहीं सुहाता । ब्रह्मा--नहीं, शह्डर ऐसे नहीं हें । उनके ऊपर ऐसा कटाक्ष करना, पाप है । कोई कारण हो गया होगा-जिससे अब तक नहीं आये । धनपति--कहीं मसानों में धूम रहे होंगे । कविराय--या भंग पीकर भूम रहे हेगि !




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