सती पार्वती | Sati Parvati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राधे श्याम कथावाचक - Radhe Shyam Kathavachak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० ) - सती पावती
मूषन के मप, भावभरे, माम्यवान भीम,
भुजन के भय भावी भोति भाजती रहे ।
वीरन के वीर, वीरसेन, वीरभद्र, वीर,
वीरता की बीरा वीथी-बीथी बाजती रहे ।
इन्द्र--आज के उत्सव मे ग्रायः सभी देवताओं के दर्शन
पाये; परन्तु यह नहीं समझ में आया कि भगवान शङ्कर
अभी तक क्यों नहीं आये ?
ब्रह्मा--हाँ, में भी यही सोर्च रहा हूँ।
नारद--( स्वगत ) और में भी यही सोच रहा हैं :--
सदा शिव तो सदा शिव हैं, निरंजन धाम है उनका ।
जह्य पर मोह-लोला हो, वहाँ क्या काम है उनका ॥
दच्तु--पिताजी, मेरी राय में तो शइझुर इस उत्सव में
आयेंगे ही नहीं ।
ब्रह्मा--क््यों ?
दक्ष--क्यों कि उन्हें मेरा प्रजापति बनना नहीं भाता।
किसी भी आत्मसेवी को पराया सुख नहीं सुहाता ।
ब्रह्मा--नहीं, शह्डर ऐसे नहीं हें । उनके ऊपर ऐसा कटाक्ष
करना, पाप है । कोई कारण हो गया होगा-जिससे अब तक
नहीं आये ।
धनपति--कहीं मसानों में धूम रहे होंगे ।
कविराय--या भंग पीकर भूम रहे हेगि !
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