अन्तिकारी यूरोप तथा नेपोलियन का युग | Krantikari Europe Tatha Nepolian Ka Yug

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अन्तिकारी यूरोप तथा नेपोलियन का युग  - Krantikari Europe Tatha Nepolian Ka Yug

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची

परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी

शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957

व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत

विशेष योगदान --

राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड

Read More About Ishwari Prasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१० क्रान्तिकारी यूरोप तथा नेपोलियन का युग समय शासन के शीर्ष पर कोई ऐसा योग्य मन्ती भी नहीथा जौ इस अराजकता एवं अव्यवस्था से शासन को मुक्त कर उसे युग की माँग के अनुरूप बनाता। काडिनल प्ल्यूरी ने महामन्ती कोल्बर के पद-चिह्लों पर चलते हुए देश की आधिक व्यवस्था को सुधारने का प्रयास किया था गौर इसमे उसे कुछ सफलता भी मिली थी । परन्तु उसकी मृत्यु के बाद स्थिति और विगड़ गयी । लुई के अपव्यय, शासन विषयक उसकी उदा- सीनता, युद्धो की विभीषिका, लुई की रखेल स्वियों का शासन मे अनुचित हस्तक्षेप, एवं दरबारियों की स्वार्थ-लिप्सा ने फ्रांस को रसातल में पहुँचा दिया। विलासिता में निमग्न लुई को कहाँ यह चिन्ता थी कि देश को इन विनाशकारी तत्त्वों से मुक्त करे। शासन में परामर्श के लिए तो उसने स्त्रियों को योग्यतम समझा था; वह एक के बाद एक स्ती की प्रभाव-परिधि मे आता गया मदास शातरू (12168), पौम्पादरूर, द्यू बरी प्रभुति रानियां उसकी मुख्य मन्वाणी थी। एसी स्थिति में अव्यवस्था अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी । | वह लुई जो एक समय सर्वप्रिय शासक के रूप मे समादत होता था, अब निन्दा का पात्र हो गया । उसमे इतना साहस न रह्‌ गया किं वह॒ जन-समूह का सामना करता । अपने जीवन कौ सध्या मे सम्भवतः उसे फ्रांस के राजतन्त्र के अन्धकारमय भविष्य का आभास हो गया था। वह प्रायः कहा करता था कि स्थिति शोचनीय अवश्य हे, परन्तु मेरी मृत्यु तक निश्चित रूप से वह यथावत्‌ रहेगी, मेरे बाद तो प्रलय ही है (167 006 1116 १८०६८) । लुई के ये शब्द अक्षरशः सत्य निकले । उसके उत्तराधिकारी को राजसिहासन बहुत महँगा पड़ा। वह अपने उत्तराधिकारी के लिए विरासत में छोड़ गया रिक्त राजकोष, शिथिल शासन, वृभुक्षित जनता तथा सामाजिक वैषम्य । इन सब शिथिलताओं तथा प्रबुद्ध युग-चेतना ने एक महान क्रान्ति को जन्म दिया जिसकी परिणति हुई बूर्बा वंश के अन्त में ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now