यमदीप | Yamdeep
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इलाहाबाद के किसी अस्पताल में वार्डब्वाय था। बेटे के मोह में छेलबिहारी के
माता-पिता उसकी वास्तविकता जानते हुए भी अपने से अलग करने का साहस
नहीं जुय सके थे। परंतु धीरे-धीरे समाज में इस भेद के खुल जाने और परिवार
को बदनामी होते देख छेलबिहारी स्वयं एक दिन अपने नियत स्थान पर आ गया
था और छैलबिहारी से छेलु हो गया था। अपनी नियति पर चुपके-चुपके एकात
में आंसू बहाने वाला छेल ज्यादातर बुजुर्ग सोबराती की सेवा में ही अपने को व्यस्त
रखता। ग्राहकों के यहां जाकर नाचने-गाने या ढोलक बजाने की न तो अभी
उसकी हिम्मत ही होती थी और न ही उसकी आत्मा साथ देती। सभी उसके मन
की यह दशा समझते थे और समय की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि यहां आने
वाले की आरंभिक मनोदशा ऐसी ही होती है। फिर धीरे-धीरे वहां के माहौल मे
ढल जाने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है।
छेलू आकर माजबीबी के सामने खड़ा हो गया! उसकी पूरी बनियान पसीने
में भीगी थी, जिसे उसने मोडकर पेट के ऊपर उटा लिया था। मरमेले पाजामे का
इजारबंद सामने नीचे तक लटक रहा था।
“तू तो अस्पताल में काम कर चुका है न, छेलु? एक बात पूछ?!
नाजबीबी के चेहरे पर असमंजस का भाव था। बच्ची के बारे में बह छेलू को
बताए या नहीं? अगले ही पल उसके मन ने जवाब दिया था-- अपनी बस्ती में
इस बात को किसी से भी कैसे छिपा सकेगी? सबको पता चल ही जाएगा,
इसलिए तू बता ही दे।
अगले ही पल नाजबीबी ने अपनी बात कह दी-- देख, आज मुझे एक
गली में टेपकी मिली है। देख, वो देख, बिस्तर पर है। कोई भला आदमी इसे
लेने को तैयार नहीं हुआ। हाथ जोड़कर मैने सबसे कहा। पर यह पागल औरत
की कोंख से पैदा हुई है, शायद इसीलिए। या लोग दूसरे का पाप अपने सिर नहीं
लेना चाहते होगे. -पर किसी न किसी ते तो अपना यह पाप उस पगली की कोख
मे डाला होगा। हूं, पागल को भी नहीं छोड़ते ये कमीने इनसान...तू ही देख इस
टेपकी को, छैलू। कहीं से पाप का भाग लगती है। देख, चल देख !'' कहते हुए
नाजबीबी छैलू का हाथ पकड़ अंदर कमरे में घसीट ले गई।
छैलू झुककर बच्ची को ध्यान से देखने लगा था। सफेंद रुई के फाहे जैसी
कोमल बच्ची आंखें बंद किए रोने के लिए मुंह खोल रही थी, परंतु शायद
कमजोरी के कारण उसके गले से आगाज तेज नहीं निकल गा रही थी।
“इसे कुछ पिलाया कि नहीं, नाजबीबी?'' छैलू पूछ बैठा था।
“क्या पिलाती? वहां से किसी तरह छिपते-छिपाते इसे यहां लेकर आई
यमदीप ७ 17
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