आधुनिक संगीत की शास्त्रोक्त परम्परा के परिपेक्ष्य में भरतनिर्दिष्ट संगीतवोधक सिद्धान्त | Adhunik Sangeet Ki Shastrokat Parampara Ke Paripeksh Me Bharatnirdisht Sangeetvodhak Siddhant

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Adhunik Sangeet Ki Shastrokat Parampara Ke Paripeksh Me Bharatnirdisht Sangeetvodhak Siddhant by गीता बैनर्जी - Geeta Benerjee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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षडज, रिषभ, गन्धार, मध्यम, पंचम, धैवत ओर निषाद ये सप्त स्वर वैज्ञानिक रूप से माने जाते है । इससे अधिक स्वरों की संख्या कहीं नहीं है । अज से 2000 वर्ष॒पूर्यं भरत ने एक सप्तकान्तर्गत सात | शुद्ध स्वर और 22 सूकष्मनादं [शति की जो कल्पना की उस्कं पीछे भरत मनि की घोर तपस्या ओर परिरम दष्टिगत होता है । [71 क्योंकि उस समय उनके पास स्वरो की नाम जोख के लिए आज की तरह न तो कोई वैज्ञानिक उपकरण था और न प्रयोगशालाएं, केवल पशु पक्ष्यो की ध्वनि के आधार पर स्वर ओर श्रतिर्यो जैसे संमीत विषयक सूक्ष्म লাবাঁ के मानदण्ड स्थापित करना ओर उनके निश्चयात्मकं सिद्धान्त बनाना अपने मे बहुत दुष्कर कार्यं नही, असम्भव भी प्रतीत होता है | किन्तु यह भरत की वर्षो की साधना ओर तपस्या का परिणाम है, कि जिन स्वर-श्रतिर्यो का उन्होंने निर्धारण किया वे आज भी सहजता से कण्ठ से निकलते है । स्व0 पंडित ओकारनाथ ठाकुर ने कहा है - हमारे यहाँ का संगीत कल्पना प्रधान है किन्तु उस कल्पना के पीछे ठोस सत्य का आधार है जो निर्णयात्मक ই। | यही कारण है कि भरत के नाट्य और संगीत विषयक सिद्धान्त निर्णधात्मक है । उनका कोई विरोध नहीं । 18] मा. जात. গজ পি গর আজঃ खाक यही नहीं भरत के वाद यद्यपि हमारे देश में विविध प्रकार के राजनैतिक सामाजिक और सांस्कृतिक उतार-चढाव आए जिनका प्रभाव हमारे साहित्य, संगीत ओर कला पर पड़ा, परिणामतः जन-खचियों में भी बदलाव आता गया फलतः भरत द्वारा निर्दिष्ट संगीत की संज्ञाओं मे क = कके पः नो भति भयदः विः পে दे चद पा आः पक এরি आभाः कको काका রি शि ০. ও ও এ भये পারার আর यकः পীর মিট গজ व्याख्यान माला - पंडित ऑकारनाथ ठाकुर 1947 मार्च, पु0 - 55




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