मुक्तिबोध की सामाजिक चेतना और कला चेतना की पारस्परिकता का अध्ययन | Muktibodh Ki Samajik Chetna Aur Kala Chetna Ki Parasparikata Ka Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
505
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवश्य पडता। सन् 42, के आन्दोलन मे शारदा शिक्षा सदन बन्द हो जाने के
कारण मुक्तिबोध उज्जैन चले गये।
शुजालपुर और उज्जैन मे ही 'तारसप्तक' की योजना बनी, जिसमें
माचवे, नेमिचन्द्र, भारत भूषण, मुक्तिबोध, अज्ञेय, रामबिलास, गिरजाकुमार एक
दूसरे के सपर्क मे आये। इस सग्रह मे मुक्तिबोध का स्थान बड़ा मौलिक,
बौद्धिक और रोमानी है।
` उज्जैन मे मुक्तिबोध ने मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ की नींव
डाली, जिसमे भाग लेने के लिये बाहर से लोगो को बुलाया जाता, जिनमें
रामविलास ओर अमृतराय मुख्य होते। सन् 44. के अन्त में (मुक्तिबोध) ने
` इन्दौर मे फासिस्ट विरोधी लेखक कान्फ़ेन्स का आयोजन किया, जिसके अध्यक्ष
राहुल जी थे। मुक्तिबोध ने स्वयं लेखको के दायित्व पर एक लेख पडा था। वे
नये रचनाकारो का उत्साह बढाते थे। मजदूरो से सपर्क स्थापित करते थे,
मित्रो और साहित्यिक बन्धुओ के सुख-दुख मे बडी सक्रियता से भाग लेते थे।
सन् 45, मे मुक्तिबोध उज्जैन से बनारस गये और त्रिलोचन शास्त्री के
साथ 'हस' पत्रिका के सम्पादन मे हाथ बटाने लगे। साठ रूपये में यहाँ
सम्पादक से लेकर डिस्पैचर तक का काम करते थे। यहॉ वे सुखी नहीं थे
अत (भारतभूषण) और नेमिचन्द्र ने उन्हे कलकत्ते बुला लिया पर निराश होकर
मुक्तिबोध जबलपुर लौट गये। वहाँ 'हितकारिणी' हाईस्कूल में वे अध्यापक है
गये, और दैनिक “जयहिन्द' मे भी काम करने लगे। साम्प्रदायिक दंगों कै
समय रात की ड्यूटी देकर कर्फ्यू के सन्नाटे मे घर लौटते। बड़ी मेहनत से
अपनी कविताओ के टुकडों को हफ्तो, काटते-छाटते और अपने पिन
कल्पना तथा ऊर्जा से समृद्ध करते |
जबलपुर से मुक्तिबोध नागपुर चले गये। यहाँ उन्होंने काफी अभावाःश
जीवन को भोगा, पारिवारिक सदस्यो मे वृद्धि. मर्हेगाई ओर बिना नौकर कू
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