महादेवी वर्मा साहित्य : वाद-विवाद-संवाद | Mahadevi Verma Sahitya Vaad-Vivad-Sanvad

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Mahadevi Verma Sahitya Vaad-Vivad-Sanvad by मालती तिवारी - Malti Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(11) के वस्त्रो को धारण करे। इस आन्दोलन के माध्यम से भारतीय जनता को राजनीतिक स्वाधीनता भले ही प्राप्त नही हुई, लेकिन उन्होने गुलामी की मनोवृत्ति का सर्वथा परित्याग कर दिया। उन दिनो सम्पूर्ण भारत में अद्भुत उल्लास ओर उत्साह छाया हुआ था। हजारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल, कॉलेजों का त्याग करके राष्ट्रीय स्कूलो मं प्रवेश ले लिया था, वकीलो ने वकालत छोड़ दी थी, खादी स्वतन्त्रता का प्रतीक बन गई और 'तिलक स्वराज फड' में महिलाओं ने दिल खोलकर गहने और जेवर दिए थे। सरकार ने दमन का आश्रय लेकर आन्दोलन को दबा दिया तथा गाँधीजी को जनता के मध्य सरकार के खिलाफ असतोष फैलाने के कारण छ वर्ष की कठोर सजा दी गई। सामाजिक परिवेश परम्परागत दृष्टि से स्त्री को भारतीय समाज में माँ और पत्नी के रूप मे अत्यन्त सम्मानीय स्थान प्राप्त था, लेकिन व्यक्तिगत रूप में उसकी सर्वथा उपेक्षा की गई है। उन्नीसवी सदी के उत्तरार्द्ध मे मानवतावादी और समानतावादी विचारों से प्रेरित होकर समाजसुधारको ने स्त्रियों की दशा सुधारने तथा उनमे शिक्षा का प्रसार करने के लिए अनेक प्रयत्म किए और 1890 मे कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रथम महिला स्नातक कादम्बिनी गागुली द्वारा काग्रेस के अधिवेशन को सम्बोधित किया जाना इस बात का प्रतीक माना गया कि स्वाधीनता सग्राम सदियो से दबी-सहमी माने जाने वाली नारी जाति को भी उनकी हीन दशा से उबारेगा। स्वतन्त्रता आन्दोलन स्त्रियों को घर की चहारदीवारी में कैद न रख सका और उन्होने भी बाहर निकल कर हडताल, जुलूस मे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया। शराब बेचने वाली दुकानों पर भी धरना दिया। खादी का प्रचार किया, यहाँ तक कि जेल जाने से भी वे पीछे नहीं रहीं। निश्चय ही, मध्यकाल से पराधीन नारी की यह एक बिल्कुल नई भूमिका थी, जिसका उसने सफलतापूर्वक निर्वहन किया। राजनीतिक दृष्टि से अधकारमय ओर उहापोह से भरे वातावरण मे महादेवी व्मां का जन्म हुञ। यद्यपि तत्कालीन समाज मे कन्यारत्न की प्रापि खुशी का विषय तो नहीं था, पर महादेवी के परिवार में पिछली सात पीढी से लड़की का जन्म न होने के कारण स्थिति भिन्न थी। शिक्षित और सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के कारण उनके माता-पिता ने बचपन से ही महादेवी को अपनी रूचियो का पूर्ण विकासं करने का अवसर प्रदान किया। आर्य समाजी सस्कारों के साथ उन्हँ मिशन स्कूल मेँ भरती करवा दिया गया ओर घर पर भी हिन्दी, उर्द्‌, सगीत ओर चित्रकला की शिक्षा देने के लिए शिक्षक की नियुक्ति की गई। महादेवी जी ने लिखा है-- तीन वर्षं की अवस्था में मा के साथ मैं इन्दौर चली गई। हस प्रकार मेर सस्कार तथा रुचियाँ बनने का समय मध्य प्रदेश में व्यतीत हुआ, जहाँ पशु-पक्षी, पेड-पौधे ही हमारे सगी रहे। सेवक मिला रामा, जो हमारी




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