मनु तथा उनके भाष्वकारों में राजनीतिक विचार और संस्थायें | Political Ideas And Institutions In Manu And His Commentators

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Political Ideas And Institutions In Manu And His Commentators by कृष्णा चन्द्र श्रीवास्तव - Krishna Chandra Srivastava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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<) कौडं कार्य ल्या गाता है। শালা उदाहरण देते हूए कहते है শীত यदि मनुष्य सागततठ भात मे कार्य करता है ती उप्तर्म अच्छाई की प्रततत्त आती है तथा भीतिष्य णन्य में उत्ते ठही फल प्राप्त होता है। यह भी उल्लेबनीय है बैक कर्म पररीस्थीत णन्‍्य होते हैं। प्रकत्या भत्रा मनृष्य उनके दबात ते चुत हकर हरे कार्य करता है अन्यधा अच्छे कर्म तो स्तभातनन्य हीते दही है। मतरष्यका स्तभात ती शक ही होता है। तह फिभिनन अठस्थाओंँ म अक्रिय या स्य ही सकता है तथा उसका ता स्तीठक त्यतहार तदनुत्तार प्रभावित हो' सकता है। मानठ स्तभात की अच्छाई मेँ সব ने कुतग्ग में अपनी आस्था के माध्यम से शठिइठात त्यक्त #ैक्या है। मानत स्तभात की अच्छाई में मनु तथा सम्पूर्ण भारतीय परम्परा के भैत्ठाघ् का' शक यह भी प्रमाण है ¶क यहाँ बकिसी मुत्र पातक की अतधारणा नहीं है जिससे पूरी मानत जात कलीकत हो' तथा †जसपे उद्धार का एकमात्र मार्ग दैती अनुग्रह ही। मनुष्य स्तयं उत्तरदायी है अपने स्तभात के अनुरूप अपनी पिराटता स्थापित करे के हये और उसके किपरीत अपनी दानत्ता का अनुसरण करने के त्तिथि-- पश्यीस्धीत्यौ का योगदान भी हौ सक्ता है ले¶कन ते पूर्णतया भनर्धारक ततत नहीं है। इस प्रकार मनुष्य कौ सतभागैतक अच्छाई में भारतीय परम्परा की कभी कोई तंदेह नहीं रहा। अतः मतु जिस अराणक की और संकेत करते ह तह आदम प्रवृत अतस्था का सूचक नर्ही है। आगम प्राकृत अतत्था ती कृतयुग दही है तथा असाणेक उसकी तिकृीतमात्रदहै।




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