रूद्रभट्ट विचरित श्रृंगारतिलक का आलोचनात्मक अध्ययन | Rudrabhatt Virchit Sringartilak Ka Alochanatmak Addhayayan

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Rudrabhatt Virchit Sringartilak Ka Alochanatmak Addhayayan by दिनेश कुमार शुक्ल - Dinesh Kumar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विचार करेगे जिनके कारण “रुद्र“(रुद्रभटट) को “रुद्रट” समझा जाता रहा है। ये सभावनाएं निम्न है- 1) “श्ज्नारतिलक”“ के कुछ हस्त लेखो मेँ इसके लेखक का नाम “रुद्रट” दिया गया है तथा शुन्नारतिलक को काव्यालङ्र संबोधित किया गया है | इति रुद्रट विरचिते काव्यालङ्र-न्नारतिलके तृतीयपरिच्छेदः समाप्त“ ^ [15010116 (2210046 ग ७815111 19210150110 ॥1 00/©11111611{ 011611{8| 102171501005 11012191155 ৬০। ১০৫ 1918, 00 8697-99. 2) इण्डिया आफिस कैटलाग (प 321-322 स 1131) मे “श्वत्नारतिलक” के ৬০০ लेखक का नाम “रुद्रट” और “रुद्रभट्ट“ दोनो दिया गया है । ॐ) कछ हस्त लेखों में ग्रन्थ का नाम “श्ज्नारतिलकारव्य काव्यालझर” और ग्रन्थकार का नाम “रुद्रमटट* दिया गया है| 38115111 155. [10181 79111019170 5306 (0409) 4) इसी प्रकार प्रसिद्ध अलङ्कार ग्रन्थ “काव्यालङ्र' के कुछ हस्तलेखों मे इसके আর लेखक का नाम “भट्टरुद्र” दिया गया है | “इति भट्टरुद्रविरचिते काव्यालङ्कारे षोडशोध्यायः समाप्तः ।“ (^ 11 01६ 07 94791 11210806 106 1021222 2 - 81५8) (1880) 1০. 610, 7 284) इस प्रकार चूंकि “काव्यालझर” का लेखक “रुद्रट भी काव्यालज्ञर की पाण्डुलिपि में ही “मट्टरुद्र” के नाम से और “श्ज्ञरतिलक” का लेखक “रुद्रभटल* शृङ्गारतिलक की दी पाण्डुलिपि मेँ “रुद्रट* नाम से भी उल्लिखित हे, अतः श्रेंब उत्पन्न होता है| इसी प्रकार कुछ उद्धरणों की अस्तव्यस्तताएँ देखें-




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