हिंदी काव्य की शास्त्रीय प्रवृत्तियाँ भक्तिकाल के सन्दर्भ में | Hindi Kavaya Ki Sastriya Pravatain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জাক্গাযকী কী मी मान्य है । हस सूत्र की व्यवस्था में कहीं भी परिवर्तन हम आचारयों में नहीं किया है । मारतीय मनीन के उन्तसत शास्त्र के सत्य का दहन काकै उसे प्रतिष्ठत कलै का माव या मी तदवतु वर्तमान है । रस के पवात्‌ हम ककार 'सिद्धास्त को छेते है यहां मी वाभायाँ दारा निष्क के अन्तिम जिन्दु तक्‌ पहुल कौ पबु হশ্দিলৌনয है । जाहि यह आधार्य मामह हों या दण्डी, वामत हाँ या कयुयक | छकार कौ काव्य में जावश्यक मानमै बारे वाचायाँ का शक बढ़ा समुदाय था, हस समुदाय में मी चिन्तम्‌ म निशि मुठ तत्त्व को पकड़ने की इच्छा ही सर्वप्रथम थी | आचार्य मामह में बह़कारों की पपिमाषारं ककतानुढ़म म दी ई, दण्डिन्‌ ने स्वामावौकिति कम मै अथात्‌ सशता को अकार का गुह तत्व माना ই জী वामन सादुरय कौ जकार কা মুভ উল पामते इ । यह स्व चिम्तक इस तत्व को ही' प्रतिष्ठित करने के 'लिए प्रवत्मशीत रहे कि बन्तिम सत्य क्या है। इसके 'छिर उन्होंने अह़कारों की क्मैक प्रिकाषरं प्रस्तुत की । आचार्य बामन ने जथाकुकारों का मुक सत्व उपसाठुकार को साता है । श्राभीनों के मतानुतार कंकार ही काव्य के श्वास तत्व है। मामह अभिवावादी জাগার মাসি লহ है | इनकी जमिया में ভহাান तक संकेत अवश्य मिलते परन्तु इसके आगे यह नहीं बड़े है তারি জলা को हल्हाँते कोई व्याख्या नहीं की है। अभिषा-कछृदाणय सपतन शब्दा्थ ` ही इन अकाय धियम को काण्व शरीर है। अहकाश्बादी आवायाँ भे काव्य प कि सव्य यो वर्ष का समावेश 'किया है वह अभिवा थार कृषा जग से हो बुढ़ा जुआ है। मारतीय का ण्यशास्त्र की महत्त्म उपठा ज्य ` इष्वः तथा जय ^ कौ बहुधिष वकद जोर उसकी मभ्मीएलम मीमासा है। भागमह के अनुसार अककार की দেবা तमी सम्भव हे জন शष्वुथ यय उविति केका सपनम इमौ । शब्दार्थ की ढोकौ ता रुप से अवस्थिति ही' बढ़ता है । उन्होंने अधनुयायी शन्द सौकर्व को काव्य का जाषार माना तथा परम्परा से चढ़े जा एदे गुल, पाक, देवा, छकग, रीति कौ वस्वी आये है ऐसी सवता वौ काव्य में से बाहतप सथ कारणक करती ই | दष्डी ङी बाणा दै ति लकार कात्य क शौसाकारक वर्मः ई




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