भारत में शांतिमय समाजवाद | Bharat Mein shantimay Samajwad

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Bharat Mein shantimay Samajwad by कृष्ण मोहन गुप्त - Krishna Mohan Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| हे ।ै वस्तुतः यदि तथ्य पर ध्यान दिया जाय तो शुरू से अन्त तक गाँधीवादी भावना, जिसके याँत्री तथा नेहरू प्रतीक हैं, जनता के दख को समाप्त करने की छुटपटाहट से, समाज में आर्थिक राज- नीतिक तथा सामाजिक न्याय! को साकार करने की व्ययता से तथा शान्तिमय समाजवादी व्यप्स्थाः की स्थापना को आकुलता से ओत- गोत्त हे! यदि इस तथ्य में सत्यता के लिये कोई भी शंका का स्थान होता, तो भारत की कोटि-कोटि जनता के विशाल हृदय में ये दोनों मत्तया अमिट, श्रव तथा चमकती न होती छर आज दुनियाँ के सामने भारत न तो अपने व्यक्तित्व को इतने योरव के साथ उपस्थित कर पाता और न ही वह विश शान्ति के लिये इतना महत्त्वपूर्ण योग दे सकता। अभी चार-पाँच साल भी नहीं बीत सक्रे हैं, सम्पूर्ण विश्व युद्ध के मनोविज्ञान से त्रस्त था, दुनियाँ के कोने-कोने में तीसरे महद्रायुद्ध की मयाव्ोा कल्पना से इन्तजार होती थी; लगता था युद्ध इस कण या उम्त त्ण क्रिसी ज्ण ग्रारम्भ होगा ओर महव अंग्रेज दाशनिक्ष रसेल के शब्दों में इस भीषण विभीषिका ये समस्त मानव-जाति का ही अन्त हो जायगा; लेकिन आज चारो ओर शान्ति की विजयी घोषणा हो रही हे युद्ध की कल्पना ज्ञीण और उसको दरी हमसे वद्ठती जा रही हे क्या हम इसे किसी भी गलल्‍य पर भुला सकते हूं रि अन्तराय रंग-मंच पर इस महान कान्तिझारी परिवरत्तेन का कोन नायक है? जब कि कुश्व॑व, बुलयानिन, थाकिन नू, चाऊ एन लाइ, नापिर, टीटो तथा सऊदी अरब के शाह जेसे विभिन्न राष्ट्रों के प्रतिनिधि, आइन स्टाइन तथा रसेल जं विचारक एक स्वर से यह स्वीकार करते हैं कि नेहरू जी ही युद्ध में डबते संसार की एकमात्र आशा है, तब यह महान गद्दारी होगी यदि इसके महत्व की ओर से हम आँखें बन्द कर लें |




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