चीन की संस्कृति | Cheen Ki Sanskriti

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Book Image : चीन की संस्कृति  - Cheen Ki Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट चीनं कीं सस्कृति. भिन्न उच्चारण होनेसे एक बडी भारी कठिनाई आपडती है। अगर इसतरह की दिक्कत न हों तो, चीन की भाषा ही , सव से सहली जान पडे, क्यो क्रि उसमे जातिमेद वचन विभक्ति अथमेद्‌ कायै आदि कुछ भी नदीं है । उच्चारण मे अशुद्धि होने पर क वार बाडा गोरमारु हो .जाता है। एक समय एक विचार्थीने येन ४० मंगवाया, परन्तु किम अक्षर पर भार देंने से हंस और नमक. अथ होता है, यह न समझ वह बतक लेने को दौडा, पर जरूरत थी नमक की, इसी तरह एक अंग्रेज अमख्दारने परदेशी . खति चग कचदृरी म यह बात कदी कि टिन्टसिन के छोग परदेशियों को देख माउट्झा माउट्झा कहकर चिल्लाते हैं। उस से मुझे माद हाता है कि इन परदेशियों की सिरकी टोपी देखकर चीनियों को आश्चर्य ूगंता है। बात यह है कि माउट्झा का उच्चारण फलाने २ अक्षर पर भार देकर बोलने से “ ठोपी यह होता है, और दूसरीतरह बोलने से बार काछा ऐसा अर्भ होता है, क्‍यों कि चीनी विदेशो की दादी को देखकर बोलते थे। अतः दाढीवाला यह जथे होता था, अब तक भा यह विशेषण परदोशियों को लगाया जाता है, एवं छारू दाढ़ी वारे इस नाम से भी पुकारा जाता है । जे (१२ ) चीन की लिपि ३००० वर्ष से चढी জা रही है। उस में मनुष्य पशु पक्षी घोड़ा कुत्ता अंक वगेरह के चित्र ८ কনিক্ধাত जतिथे । इतनी परितन चालनी लिपि में अब




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