हिंदी के सात युगान्तरकारी उपन्यास | Hindi ke Saat Yugaantarkari Upanyas

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Hindi ke Saat Yugaantarkari Upanyas by रामप्रकाश कपूर - Ramprakash Kapoor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेवासदन हिन्दी में 'सेवासदन” का प्रकाशन एक ऐतिहासिक महत्त की घटना है। यह हिन्दी का पहला युगान्तरकारी सामाजिक उपन्यास है। प्रेमचन्द ने श्रपने लिये जीवन का विशाल पट चुना । अपनी रचनाओं में उन्होंने जीवन की नानाविभ परि- स्थितियों का प्रभावपूर्ण अंकन किया। प्रेमचन्द का साहित्य अपने समय की राष्ट्रीय जागति, संघ और समाज की विपत्न अवस्था का जीता-जागता इतिहास उपस्थित करता है। अपनी रचनाओं में समाज के निम्नवर्गं, किसानों तथा पराधीन स्त्रियों की दयनीय स्थिति का उन्होंने जैसा विस्तृत और तरहुुविधि चित्रण किया है, वैसा भारत का संभवत: कोई कथाकार नहीं कर पाया है। यथाथ चित्रण की इस प्रवृत्ति के कारण प्रेमचन्द एक অধ में 'यथाथ्थवादी” कहे जा सकते हैं। “मोपासाँ? के अनुसार--- “यथार्थवादी, यदि वह कल्लाकार है तो, हमारे सामने नीवन और जगत्‌ की फोटो मात्र नहीं लींचेगा वरन्‌ पक एेसी जीवन दृष्टि ( ५1510) ) भी देगा, जो स्वयं यथाथता से श्रभरिक पूणं, ग्रधिकं तेज ओर अधिक विश्वसनीय दोगी 1५१ प्रेमचन्द में इसी जीवन-हृष्टि को “आदश के रूप में हम प्रतिष्ठित पाते हैं। वह सादिप्य को जीवन का स्थूल दपण न मानकर “दोपक? मानते हैं, बिसके प्रकाश में हमारा जीवन आगे दता है) इसीको श््रादर्शौन्मुख यथार्थवाद” भी कहते हैं । 'सेवासदन! में लेखक अपने इसी दर्शन से प्रभावित है। सुमन को पुनः वेश्या से ऊपर उठाने की चेष्टा एवं 'सेवासदन? को स्थापना--इसी “आदश” या सुधारवादी दृष्टिकोण से प्रेरित है। कदाचित्‌ इसी कारण कुछ “नीर-क्लीर विवेकी” समीक्षक, 'सेबासदन! के अन्तिम अंश को अस्वाभाविक एवं प्रभावान्विति में बाघक मानते हैं। परन्तु 'सेवासदन” के महत्व का सहो मूल्यांकन तभी किया जा सकता है, जत्र हम 'सेवासदन' के प्रकाशन से पूव के हिन्दी उपन्यास के आरम्मिक युग को भी अपनी दृष्टि से शरकल न होने दे । सन्‌ श्८८ए से सन्‌ १६१५ तक हिन्दी उपन्यास का रम्भिक संक्रान्ति काक या प्रयोग-काल था । उस युग में “चन्द्रकान्ता? और 'तिलस्म- /होशरूा के पाठक लासो ये । १६१६ के लगभग 'सेवासदन! प्रकाशित हुआ । यह एक ऐतिहासिक घटना कही जा सकती है। प्रेमचन्द का युगान्तरकारी कार्य “चन्द्र- कान्ता के कालों पाठकों को 'सेवासदन? पढ़ने को प्रेरित करने में लक्षित होता है। उन्होंने हिन्दी उपन्यास को तिलस्म और रेय्यारी के मायालोक एवं उपदेश तथा १ मोपार्सों के अनुसार---“7४6 76७)8६, 1 16 18 80. 816190 জ]] 869%. 006 †0 £{ष© प* 0818) 1010४080 ० ४16 010 006 ৪, 18167 ০ 1 009৮ 19 91161, 81081097, [0076 90011001708 01081) 29816 16891 |”?




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