परलोक | Parlok

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Parlok by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छप्कमणिक्ता | ও ब्यांस। जो ङोग इहकार्क्े सव नियमोंका यथो- चित प्रतिपालन करते ई उन्हे छु भय नहों होना चाहिये। इस समय वह बढ़ी बोलो कि खुले कोई कपड़ा ओटा देव, वड़ी सर्दों मालम होती! उस समय गर्मीका सोौसिम था, तिसपर भौ उतच्हें उत्तना जाड़ा मालम करते छेखकर सुझे भय होने रगा कि इनका सुक्तकाल अब आपहुंंचा। मैंने उन्हें कपड़ा ओढ़ा दिया) ब्राह्मणौ । सने का इहकारुके कार्य्यो को उत्तम নবী किया है ९ व्यास! सालम होता है कि आपने किया है। ब्राह्यणों। तव सुझे कोड़े भय नहों है। आश्ी सत्यराज ! अब सुस्त कोई भय वा चिन्ता नहों है। इतना कहते उनकी दह गोया हंसौसै भर गर और उनकी आखे आनन्‍्दर्से चमकने रूगों। तब वह फिर बोलों “सेरे स्वामोके साथ यह देव-शरोर धारौ जवान कौन है १” तब बोलो रुकनेपर उद्धपबास आरस्स हुआ। मैने उसी समय ध्यान रूगाया, देखा कि आत्मा समस्त शरोरमें व्याप्त थो, पर अब कई अद्वोंसे तेज निकलकर मस्तिय्कुकी तरफ दोड़ने लगा है। शरोरके वे सव अक्ु प्र्यद्ध अब धोरे धोरेआत्माको इच्छाके ' अनुसार काम करनेमें असमर्थ होने रंगे हैँ। आत्माका तेज जेसे जेसे उनके पाससे निकूछकर ऊपरको जानेको चेष्टा करने रगा, वैसे वैस उसे अपने पास . हौ . रखने के लिये वे -सब कोशिश करने रूगे। बहुत दिनोसे एक




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