चोंच महाकाव्य | Chonch Mahakavya

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Chonch Mahakavya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रोफेसर चाँख धू दंशेनों के लिएं जी तड़प रहा था । इतने इन्तज्ञारं की बाद हलर का दीदार नसीब हो ही: गया । आप नौजवान आदमी. थे--खबसूरत भी थे, ज़ास कर नांक तो बढ़ कर ज्ञागलोल हो गयी थी। आप को आँखें मश्काने की विद्या भी ख़ब याद थी । हम लोगों ने तो यही समझा कि आप किसी थिएटर से निकल कर श्रां र्दे) | | । धे श्राप वी ५०1 ` श्रापकौ 1520110 6:00519006 এ था ! आपने कोई छुः-सात महीने प्यक [0 एध्‌, 8७00० में पढ़ाया था । दम लोगों के पढ़ाने दो लिए यह. 83190719506 জাতী জী ज्यादा था । फिर. कया था, आपके हसते बढ़ गए, आपने हम लोगो के नसीव को भी जगाने का पूरा पक्का इरादा कर लिया। | अपने [67৫9৩ জী শ্রন্থ জার थाद्‌ दिलाने की जरूश्त तो है ही नहीं कि थार लोग मियाँ “नके मी क्िवक्तेगाषह हैं। बन्दों की सूद ही तो ठहरी--दूंर तक पहुँची । रात का. অন্ত था, खब क्षोग मिस्टर सिनहा के कमरे में इकई हुए | सझ मामला ते कर रखा । । ` सवेश होते दी हम सव लोग साहव হী 5718 2০০] भै ज्ञा पहुंचे । साहब श्रमी तसे-ताज्ञाश्राप्थे, सो चटथपड बाहर निकल श्राप्ट 1 उनके आते ही सबने दहने हाथ से चौ भला .कर उसे हिलाते স্থ না 01070) 97 |: . ह , राव ने अपनी टोपी उत्तार सी। पर दम्म लोग चौच. ` नाष ई হু | शाखिर साहब होतें इ 1: 1 पणत्‌ के |. श्राप हमारे 860. एर्लव्ल सै पड दही প্রত । ` प्रप्र 3.05 ধু 0077 10200 क, अपा --06ा शा वाल... *




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