बैंगन का पौधा | Baigan Ka Paudha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बैगन का पधा १
हटकर मेरी दृष्टि उस बूढ़े पर गई थी | उसकी उम्र न जाने कितनी थी,
किन्तु वह बेहद बूढ़ा दिखाई देता था। यद्यपि सर्दी से बचने के लिए.
उसके पास खेसी थी, तो भी उसके लकड़ी से पतले पीते हाथ, बाँस सी
पतली टॉगे, सूखा पिचका चेहरा और आँखों के गड़ढे साफ़ दिखाई देते
थे | तब एक अजीब सा ख्यात्र मेरे मन से दौड़ गया था--बेगन का पौधा
जब सूख जाता है तो छाँटने पर फिर फल उठता है, सहजन भी छाॉँटते पर
बढता है | ऐसे पेड़ ओर पौधे हैं, जो छॉटने पर और भी ज्यादा बढ़ते हैं।
मानव को उस अदृश्य खए्टा ने ऐसा क्यो नहीं बनाया ( किन्तु तभी अंतर
में किसी ने कहा कि मानव की बेलि भी तो अमर है--पुरुष-स्तरियाँ, बच्चे
बूढ़े, इसके फल-फूल, पत्ते ओर शाखाएँ हैं । म॒त्यु इसकी केची है । जब वे
सड़-सूख जाते हैं तो वह कची उन्हें काठ देती हैं ओर उनके स्थानं पर
नित नूतन, हरे भरे, जीवन के +उद्लास से किलकारियाँ मारते, हंसते.
नाचते, गाते, पत्ते फूल फल लगते जाते हैं ।
किन्तु यह बूदा यहाँ सर्दी में क्यों आ पड़ा है ! क्या इसका घर दर
कोई नहीं ! ओर तनिक चौंककर मैने पूछा, 'क्यों जी ठुम हो कौन !?
“जी में माद्दीरीम का आदमी हूँ ।?
“हाँ, माहीरास के आदमी तो हो, लेकिन माहीराम के क्या लगते
हो 2:
वृटा कुछ उत्तर देने लगा था कि उसे खाँसी का दौरा हुआ | कई
क्षण तक निरन्तर खाँसने के बाद, अपनी साँस को कठिनाई से दुरुस्त
करते हुए. उसने बताया कि वह माहीराम का कुछ नहीं लगता । वह उसके
गाँव का है । झुट्ठम्ब बहुत बढ़ा है। पाँच छोटे छोठे बल्चे हैं, और
बीबी, दो लड़कियाँ हैं ब्याहने योग्य ओर वह रोज़गार के लिए भाद्दीराम
के साथ चला आया है।
उसकी वाणी में कुछ ऐसी करुणा थो कि काम करना मेरे लिए
दुष्कर हो गया | में शरीर पर इतने कपड़ों के होते भी पतल्लून के ऊपर
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