अचल सुहाग | Achal Suhag

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Achal Suhag by सुमित्रा कुमारी - Sumitra Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই {विचिता ~~ न दै? बह वो नहीं चाहती कि इस सुख-बेसबप्र्ण जीवन के प्रति विंद्रीह सादे, कृपालु, सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाले पति के प्रति उसकी सारी प्रेरक शक्तियाँ क्‍यों नहीं कफेल्द्रीमूत होतीं! हृदय का समस्त प्रेम क्यों नहीं उस ओर बहता ! क्या जीवन में पति की उपासना करना, पत्नी का शाम नहीं, शिक्षा नहीं, घमम महीं, संस्कार नहीं ! तो उसका मन एकाग्र क्यों नहीं ? हिथर क्‍यों नहीं ! तम्मय क्यो नदीं! वह क्‍यों बिखश जाना चाहता £ विश्व के प्रत्येक तंरुण-कशुण हृदयो मे ! । शरो ! कैसी विडम्बना ह | केषा गलत विकार है | यह भेश का स्वॉग, रुचि का स्वॉग | छी। जीवन में घिक्कार का पात्र बनकर ने शमी चाहिये । एसे ग्रलतं विचारों को मन में लाना' भी पाप ई | जीवने बहुत से सुन्दर विचार है । सुख के सपने शतन्‍्त हैं. । फिर यह ज्वाला में तयने की, प्राशों को कलपाने की ही. भावना क्यों १ इस आप जोगे दुःख से हृदय ब्रधीमृत हो उठेगा, इसको बह अनुभव में लाती दै । लेकिन दसं मानसिक उद्देग को, उथल्नन्पुथल की वह क्या करे $ इसे आधात-्रतिबातों से वो <कराकर हुंदय चूर हुआ जाता है, वह इससे . कैसे बचे ! एक अभाव, जिसमें कहीं से भी कुछ और धमाने की : सम्भावना: नहीं - ऐसा परिपूर्ण अमभाव--चारों और से उसे अपने में समधि ही लेता दै) एक उलन, मन की गय तह में छिपी ही रहती... है। एक उठता हया विद्धीदं खड्दही रहता है। कहीं राहत महीं .. मिलती । विवश-कातंर हो कक्यना रो देती है, जिसने अधिशाप- स्वरूप, एक हृदय पाया है|. सारा ज्ञान चौंधिया नाता है, सारा . निश्चय टोकर खाकर ददकर अलग जा पढ़ता दे | झावेश ठंडे पड़े... जाते है। हृहता: हटकर गिरती है। संत জীন चिदधिया জা হক জালা? টু ; 055 25585888785




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