प्रमाद | Pramad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)অগা १४
शुन्ध्र फूलों को पसब्द*नही करता होगा ! £ +
सोहन ने गम्भीर मुद्रा घारण कर ली' ।- वह विज्ञार करने लगा- सच
तो कहती हे । फूल भी कई प्रकार के हैं इस संसार में । वह हवयें भी एक
सुन्दर तथा कोमल फूल है। कठोर तथा क्षुद्र ' हृदय भी उसकी श्रोर
ग्राकषित हुए बिना नहीं रह सकता ।
इस श्रौपचारिक वार्ता के पश्चात सोहरने माला से उसकी पढ़ाई तथा
बरेली के विषय में बातचीत करता रहा । माला बी० ए० कर चुकी थी
और आगे पढने'की अपेक्षा श्रपता जीवन समाज-्सेवा में'लगाना चाहती
थी । बरेली के विषय में पूछत्ताछ करने पर माला ने पूछ लिया, “आपने
बरेली नहीं देखी ? *
1 “नहीं। मै उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद कै श्रतिरिक्त कही भौ नहीं
जा पाया | वहाँ भी पिताजी के प्रग्रह पर उनके सोधे त्रिवेणी-स्नान कौ
गया था ।/
“तो चलो हमारे साथ। मैं तुम्हें ग्रपने घर ठहरने का .निभत्त्रणं
देता हूँ ।” !विगोद ने केह यिया। '
सोहन कुछ नही बोला । वह ऐसे औपचारिक्र निमस्त्रणा की - बात
गाला के सुख से सुनना चाहूता'था । यद्वि वहु कहती तो वह् सहं स्वीकार
कर लेता 1 'इस पर भी इन्कार करने को उसमें साहस' नहीं था । यदि
विनोद बीच ' में न बोलता तो कदाचित 'माला उसे आर्सन्नित' करती ।
उससे विंचा रकर उत्तर दिया, “पिताजी से पहले मिलेता अत्यावश्यक है।””
* “दिल्ली ततो हम भी ठहरेंगे | ।
“तब तो ठीक है । बहाँ पहुँच कर निर्णय कर लेंगे ।
इतना कहकर सोहन ते अपने उत्तर की प्रतिक्रिया जानने के लिए
माला के मुख प्र देखा । परन्तु माला केः मुख पर कद् विद्ेष भाव प्रंकित
न देख चुप कर रहा'।
दिल्ली तक सोहन ने विनोद-परिवार के साथ एक,ही डिब्बे में यात्रा
की। उसको मार्ग में माला के विषय में बहुत-कुछ समभने का श्रवप्तर
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