प्रमाद | Pramad

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Pramad by डॉ. प्रकाश भारती - Dr. Prakash Bharti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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অগা १४ शुन्ध्र फूलों को पसब्द*नही करता होगा ! £ + सोहन ने गम्भीर मुद्रा घारण कर ली' ।- वह विज्ञार करने लगा- सच तो कहती हे । फूल भी कई प्रकार के हैं इस संसार में । वह हवयें भी एक सुन्दर तथा कोमल फूल है। कठोर तथा क्षुद्र ' हृदय भी उसकी श्रोर ग्राकषित हुए बिना नहीं रह सकता । इस श्रौपचारिक वार्ता के पश्चात सोहरने माला से उसकी पढ़ाई तथा बरेली के विषय में बातचीत करता रहा । माला बी० ए० कर चुकी थी और आगे पढने'की अपेक्षा श्रपता जीवन समाज-्सेवा में'लगाना चाहती थी । बरेली के विषय में पूछत्ताछ करने पर माला ने पूछ लिया, “आपने बरेली नहीं देखी ? * 1 “नहीं। मै उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद कै श्रतिरिक्त कही भौ नहीं जा पाया | वहाँ भी पिताजी के प्रग्रह पर उनके सोधे त्रिवेणी-स्नान कौ गया था ।/ “तो चलो हमारे साथ। मैं तुम्हें ग्रपने घर ठहरने का .निभत्त्रणं देता हूँ ।” !विगोद ने केह यिया। ' सोहन कुछ नही बोला । वह ऐसे औपचारिक्र निमस्त्रणा की - बात गाला के सुख से सुनना चाहूता'था । यद्वि वहु कहती तो वह्‌ सहं स्वीकार कर लेता 1 'इस पर भी इन्कार करने को उसमें साहस' नहीं था । यदि विनोद बीच ' में न बोलता तो कदाचित 'माला उसे आर्सन्नित' करती । उससे विंचा रकर उत्तर दिया, “पिताजी से पहले मिलेता अत्यावश्यक है।”” * “दिल्ली ततो हम भी ठहरेंगे | । “तब तो ठीक है । बहाँ पहुँच कर निर्णय कर लेंगे । इतना कहकर सोहन ते अपने उत्तर की प्रतिक्रिया जानने के लिए माला के मुख प्र देखा । परन्तु माला केः मुख पर कद्‌ विद्ेष भाव प्रंकित न देख चुप कर रहा'। दिल्‍ली तक सोहन ने विनोद-परिवार के साथ एक,ही डिब्बे में यात्रा की। उसको मार्ग में माला के विषय में बहुत-कुछ समभने का श्रवप्तर




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