बराबास | Barabaas

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Barabaas by पायर लागर - Payar Lagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ववत्‌ हो चली शीं । उस व्यक्ति की मृत्यु के कारण केवल थोड़ी सी देर के लिये अन्धकार छा गया था। हाँ, बह अब चल देगा । श्रत्र सकने या प्रतीक्षा करने के लिए शेष भी क्या रहा है? जिसे मरना था--वह मर चुका । श्रत ठहरने का को कारण नहीं है | उसे सूल से नीचे उतार लिया गया है | उसने देखा दो आदमियों ने साफ कपड़े से शव को लपेट दिया । शव बिलकुल धवल हो गया था | और वे दोनों उसे इस प्रकार स्पर्श कर रहे थे जिससे उठाने- रखने में शव की तनिक भी पीछा न हो । वे सब्र बढ़ी अ्रजीब तरह का व्यव- हार कर रहे थे | आखिरकार उसे सूल्ी दे दी जा चुकी थी | कुछ भी हो वे लोग बड़े विचित्र व्यक्ति थ | माँ वहाँ खड़ी थी। उसकी आँखों के आँसू सूल चुके थे । वह अपने पुत्र की ओर अ्रपलक दृष्टि से देख रही थी कि उसे क्या हो गया और उसका रूखा काले वर्ण का मुख हृदयगत बिपाद को अभिव्यक्त करने में स्बंथा असफल हो रहा था| उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह हुआ क्या | वह केवल इतना ही जानती थी कि जो कुछ हुआ है उसे क्षमा नहीं किया जा सकता। वह उसे अधिक अच्छी तरह समझ सकता था। जब वह शोक समूह धीरे-धीरे चला जा रहा था और कुछ शोग समूह के बीच सफेद वस्नों ओर फूलों से ढके शब को लिए. चल रहे थे तब एक खली ने धीरे से 'फुसफुसा कर माँ के कान में कुछ कहा और बख्ास की ओर संकेत किया | इसके बाद वह घ्नी एक क्षण के लिए रुकी और उसने ऐसे असहाय ढंग से अ्रवमाननापूर्ण दृष्टि से बरबास की ओर देखा कि वह शायद उसे कमी भी नहीं भूल सकेगा । इसके बाद वे लोग गोलगोथा की सड़क पर चले गये और वहां से बायीं ओर मुड़ गये | बरबास सब लोगों के पीछे बअचकर छिपता हुआ-सा इसीलिए सूली स्थल तक गया था कि उसे कोई देख न सके। एक उद्यान में जाकर, जो उस स्थान से थोड़ी ही दूर था, उन लोगों ने शव को एक अख्तर [१ १ ন্‌ ~~




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