माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि का उनकी बुद्धि समायोजन तथा उपलब्धि प्रेरणा से सम्बन्ध | Madhyamik Vidhyalyon Ke Vidhyarthiyon Ki Sheshik Uplabdh Ka Unki Buddhi Samaayojan Tatha Uplabdhi Prerna Se Sambandh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Madhyamik Vidhyalyon Ke Vidhyarthiyon Ki Sheshik Uplabdh Ka Unki Buddhi Samaayojan Tatha Uplabdhi Prerna Se Sambandh by बाबूलाल तिवारी - Babulal Tiwari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाबूलाल तिवारी - Babulal Tiwari

Add Infomation AboutBabulal Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४2 उन्हें फल-फूलों से लादकर सुन्दर और सम्पन्न बनाती है। ठीक उसी प्रकार किशोरावस्था मँ किशोर यौवन के भार से लद जाते है तथा उनका शरीर सुन्दर, शक्तिशाली एवं लावण्य से युक्त हो जाता है लेकिन इस अवस्था का एक पहलू ओर भी है जिसे स्टेनलेहॉल ने- “संधर्ष, तूफान, दबाव एवं तनाव का दौर बताया है।””' उनके अनुसार जीवन के इस नाजुक दौर में किशोर-किशोरियों के जीवन में भयंकर उथल-पुथल होती रहती है। इस अवस्था में संवेगों का उतार-चढ़ाव बहुत ही अनिश्चित होता है। एक पल में वे प्रसन्‍न दिखाई देते हैं तो दूसरे ही पल वह उदास दिखाई देते हैं। चिन्ता का संवेग उन्हें हर समय घेरे रहता हैं। इसलिए कभी-कभी किशोर-किशोरियों में संवेग इतना प्रचण्ड हो जाता है कि उस पर नियन्त्रण कर पाना कठिन हो जाता है। अतः अध्यापकों के लिए संवेगों का ज्ञान- अत्यन्त आवश्यक है जिससे वह अपने विद्यार्थियों की मन/स्थिति को समझ सकें एवं संवर्गो को उचित दिशा प्रदान कर सकें क्योंकि नियन्त्रित संवेगों के फलस्वरूप ही छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखा जा सकता है, चूँकि आज के विद्यार्थियों की अधिकांश समस्‍यायें... हमारे आधुनिक, सांस्कृतिक एवं औद्योगिक वातावरण की देन है। उनकी चिंताओं संघर्षों एवं मानसिक तनाव का कारण समाज एवं संस्कृति द्वारा थोपी गई मान्यतार्ये हैं। इसलिए आधुनिक समाज की मान्यताओं एवं आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अपना भविष्य सुधारने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इस अवस्था में वह एक प्रकार के तूफानी दौर से गुजर रहे होते है परिणामस्वरूप उन्हें अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जो इनका सामना नहीं कर पाते उनका व्यक्तित्व विघटित होने लगता है तथा वे शरारती व भगोड़े छत्र बनकर स्थाई रुप से पढ़ाई, स्कूल एवं शिक्षको के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपना लेते हँ तथा बालपराधी तक की सीमा को पार कर जाते ै। अतः अध्यापकों अभिभावकों एवं समाज. का यह. कर्तव्य है कि वह उनकी भावनाओं का यथोचित सम्मान करके उनके व्यक्तित्व विकास. की नींव को सुदृढ़ बनाये रखें। इसी तथ्य को पुष्ठ करते हुए ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन ने लिखा है कि- “किशोर की कुछ विशिष्ट समस्‍यायें होती हैं। यदि शिक्षक एवं अभिभावक किशोरों को _वयस्कावस्था में सरलतापूर्वक प्रवेश करने में सहायता देना चाहते हैं तो उनको समान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now