रघुवीर सहाय तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कथा साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन | Raghuveer Sahaye Tatha Sarveshvar Dayal Saxsena Ke Katha Sahitya Ka Aalochanatmak Adhyyan

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Raghuveer Sahaye Tatha Sarveshvar Dayal Saxsena Ke Katha Sahitya Ka Aalochanatmak Adhyyan by वेद प्रकाश द्विवेदी - Ved Prakash Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रचनाकार के युग की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं साहित्यिक . परिस्थितियों एवं परिवेश का अध्ययन आवश्यक होता है। ` रघुवीर सहाय तथा सर्व॑श्वर दयाल सक्सेना की कहानियों ने तत्कालीन समय ने कथा साहित्य म आई रिक्तता की पूर्तिं हेतु नया शिल्पगत प्रयोग किया हे। अकहानी, नयी कहानी के इन्द्र में घिरे कथा क्षेत्र को इन दोनों विद्वत मनीषियों ने वस्तुगत दिशा देने का प्रयास किया था। यह प्रयास साहित्यिक कहानी के रूप में था। इन दोनों विद्वत कथाकारों की कहानियों के वस्तु एवं शिल्पगत अध्ययन से आगे चलने वाले आन्दोलन को एक नयी दिशा मिली। जौँ एक ओर रघुवीर सहाय की कहानियोँ में न्याय ओर समता के आदर्शो के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ओर उनके गैर रूमानी यथार्थ की धारणा को ` उजागर करने के साथ उनकी आत्मसजग जनतांत्रिक सम्वेदना अपने वैयक्तिक आचरण और रचना में उस करूणा या सहानुभूति के प्रति आंशकित है जो दूसरों को नीचा बना देती है। अपनी इसी सम्वेदना से समाज और व्यवस्था में व्याप्त गैर बराबरी के रघुवीर सहाय जी ने बहुत बारीकी से देखा है वहीं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कहानियों मं व्यवस्था के प्रति विद्रोही व्यक्तित्व, नारी की स्थिति, प्रेम रूप ओर ईश्वर का पारस्परिक संघर्ष जमींदारी व्यवस्था, विघटित पतनशील मूल्यो, प्रवृत्तियों से मुक्ति ओर मानवीय गुणों से मुक्ति मेँ संघर्षरत मनुष्य की गाथा आदि अनेक प्रश्न उठाये गये हे । टूटती हुई मर्यादाओं तथा निखरती निष्ठाओं के बीच मानवीय मूल्यों के प्रति जो नयी आस्था पनप ` रही थी, इसके साथ ही सामाजिक रूढियों ओर राजनीतिक भ्रांतियों को चीरकर मनुष्य की आतरिकता पर आधारित जिस नई मर्यादा का उदय हो रहा था उसी का सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी कहानियों का केन्द्र बिन्दु बनाया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रघुवीर सहाय एवं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के काव्य महत्ता के समक्ष उनकी कहानियाँ नगण्य ही हैं। पर तत्कालीन समय में कहानी आन्दोलन की तीव्रगति को देखते द हुये आपकी कहानियाँ वस्तु शिल्प की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखती हे । एम. फिल. मेँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कहानिर्यो पर शोध करने के पश्चात मुझे ऐसा लगा कि मैं उनको उतना नहीं पढ़ और समझ सकी जितना मुञ्चे शोध एवं ॥ (03)




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