पवन दूतम् का समीक्षात्मक एवम् तुलनात्मक अध्ययन मेघदूतम् तथा जैन मेघदूतम् के परिप्रेक्ष्य में | Pawan Dutam Ka Samikshatmak Evam Tulnatmak Adhyyan Meghdutam Tatha Jain Meghdutam Ke Pariprekshya Mein

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Pawan Dutam Ka Samikshatmak Evam Tulnatmak Adhyyan Meghdutam Tatha Jain Meghdutam Ke Pariprekshya Mein by शिवरामसिंह गौर - Shivramsingh Gaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(क) खण्ड काव्य के लक्षण- श्रव्य काव्य की विधा में दो तरह के काव्यों का कथन किया गया है। इस काव्य में यह कहा गया है कि श्रव्य काव्य प्रबन्ध काव्य तथा मुक्तक काव्य के रूप में दो प्रकार का होता है। इसमें भी प्रबन्ध काव्य को महाकाव्य और खण्ड काव्य के रूप में जाना जाता है। खण्ड काव्य को गीति काव्यकेनामसे भी कहा गया है क्यों कि गीति काव्य के नाम से कोई अन्य ऐसा काव्य नहीं है जो संस्कृत भाषा में प्राप्त होता हो ओर जिसका अन्यत्र कहीं कोड लक्षण दिया गया हो। खण्ड काव्य के पद गेय होते हैं इसीलिए सम्भवतः ऐसे पदों के काव्य को गेय काव्य कह दिया गया है। खण्डकाव्य में गीति काव्य का जो लक्षण दिया हि, उसके आधार पर यह कहा गया है कि इस काव्य मेँ महाकाव्य के पूरे लक्षण ` नहीं होते। ऐसा काव्य पूर्वं ओर अपर प्रसंग की आवश्यकता से बंधा ._ हुआ नहीं होता। यह अपने आप में पूर्ण स्वतन्त्र होता है और इसका प्रत्येक पद स्वच्छन्द होता है। साहित्य दर्पणकार ने इसका लक्षण देते हुए लिखा है कि खण्ड काव्य एक देश का ही बोध कराने वाला होता है।' एक अन्य स्थान पर यह कहा गया है कि खण्डकाव्य मेँ जो मुक्त छन्द होता है वह पूरी तरह से स्वतन्त्र तो होता ही है, उसके लिए यह आवश्यक हे कि उसमे चमत्कृत करने का सामर्थ्य होवें । 1. खण्डकाव्यं मवेत्‌ काव्यस्येक देशानुसारि च। वही पृ. 6/239




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