गोविन्द मिश्र के कथा साहित्य का विशेष - अध्ययन | Govind Mishra Ke Katha Sahitya Ka Vishesh - Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रांगेय राघव एक सामाजिक चिन्तन लेखक हैं। इन्होंने अपने उपन्‍न्यासों में ऐतिहासिक,सामाजिक कथानकों के माध्यम से सामाजिक जीवन की समस्याओं पर प्रकाश : डाला हैं। इस दशकों में लिखे गये उपन्यासों में 'धरौदे'(1941),'विवादमठ' (1946), 'मुर्दो का. टीला'(1948),'चीवर' (4951) हुजूर (৫952) काका'७953),अधेरे की भूख'(1955). 'सीधा-सादा रास्ता'(1955), 'बोलते खण्डहर'(1955) 'रत्ना की बात'(1956),'यशोधरा ` जीत'((956),लोई का ताना'((956),लरुमा की आंखें (4957),बौने और धायल फूल'(957),कब तक पुकारु((1958),पक्षी और आकाश'(1958),जब आवेगी काल ` घटा/(1958),बन्दूक और वीणा'(1958),'राह न रुकी (1958),'राई और पर्वत'(1958),'पॉच गधे (1960) प्रमुख हैं। “कब तक पुकारु^.मुर्दो का टीला, 'सीधा-सादा रास्ता' इनकी उल्लेखनीय कृतिर्यो हं । कब तक पुकार उपन्यास मे भरतपुर के नटो कं जीवन को उभारा गया हेँ। मुदा का टीला' मं मोहन जोदड़ों की संस्कृति ओर सभ्यता को आधार बनाया हैं | नागार्जुन ने आंचालिक उपन्यास लिखे हैं। इन्होंने अपने उपन्यासों में मिथिला प्रदेश के जीवन,आचार,विचार संस्कार,रीति रिवाज अनच्धविश्वासों को अपनी विषय वस्तु बनाया हैं। रति नाथ की चाची'(1949) बलचनमा'(1952), नई पौध(1953),बाबा बटेसर नाथ' (1954).दुखमोचन (1957).वरुण के बेटे (957). कभीपाक 1960) इत्यादि महत्वपूर्णं उपन्यास हें | बलचनमा इनका बहुवर्चित. उपन्यास हैँ । इसमें 'बलचनमा' नामक निम्नवर्गीय कृषक पुत्र की व्यथा-कथा है बलचनमा' मे सामन्ती शोषण के प्रति जो विद्रोह हँ वह मानसिक स्तर को छोड़कर सन्देह ओर सशस्त्र होते जाने का द्योतक हें। ` बलचनमा' को “गोदान'के गोबर का विकसित रुप कहा गया हैं।> वास्तव मेँ इस उपन्यास में किसान का दुख-ददं ओर सधं्ष का चित्रण हैं। 'बलचनमा सामन्ती साजिशोँ से धराशायी होने के बावजूद भी लड़ने का हौसला रखता हैं | फणीश्वरनाथ 'रेणु' मैला आंचल (1954) प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास में लेखक ने पूर्णिया जिले कं एक गाँव के माध्यम से गाँवों में व्यायक बढ़ती जा रही राजनीतिक चेतना को दर्शाया हैं |लेखक ने अपनी व्यग्य शक्ति से प्राचीन और नवीन के संधर्षो,राजनीति धर्म ओर समाज की नयी-पुरानी मर्दायाओं संघर्षो तथा इनके बीच उलझते-सुलझते अर्न्तविरोधों को चित्रित किया हैं। 'परती परिक था' (1957), इनका दूसरा महत्वपूर्ण उपन्यास हैं। जिसमें इन्होंने बिहार के एक गॉव परानपुरा को उकेरा है। बंजर भूमि को प्रतीक बनाकर लेखक ने इसमें मानवीय मूल्यों को प्रश्रय देने मे मानवता का कल्याण समझा हैं | राहुल सांकृत्यायन ने 'सेनापति/(1942).,जय यौधेय'(1944) शैतान की अख हा क्‍ (1945),किन्नरों के देश में (1948)'मधुर स्वप्न'(1950) “राजस्थनीय रनिवास'(1953),इनके .._




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