संयुक्त प्रान्त | Sanyukt Prant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
125
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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„७९१
कपड़ा बुनते हैं। पहले यहां का बुना कपड़ा बहुत
नफ़ोस होता था। आजकल जुलाहे मिल का सूत
अधिक काम में लाते हैं। गाढ़ा और डोरिया
बुनने का काम बिलपग्राम औ्लोर सण्डोला तहसाल
में बहुत होता है ।
जुलाहे कपड़े को घर घर जाकर, बाज़ार में,
गांव गांव घम कर बेचते हैं। बज़ाज़ लोग भी
इनसे कपड़े स्ररीद कर दुकान पर रखते हैं।
मद्लावे सौर सशर्डाला मे पुराने ढङ्क के क्रधों
से बुनन के कुछ लोगों के निजी कारखाने भी हैं ।
अखिल भारतवर्षीय चस््रों संघ की एक शास्खा
मलाबे में है जद्ाँ कपड़ा बुना और रंगा जाता है
एक शाखा बिल्राम में भी थी जो कुत्ध दिन हुये टूट
गइ है, चखा संघ के लोग गाँव गाँव घूमकर सूत
कातने के फ़ायदा लोगों को बताते हैं और र्डं सरग
दन क लिये रुपया भी उधार देते ह, उनका सूत
खरोद कर यहीं के जुनाहों स कपड़ा बुनप्रति हैं ।
जगह जगह उनके खादी मन्डार तथा सूत इकट्ठा
करन के कन्द्र है, ज्यों ज्यों खादी की माँग प्रान्त में
बढती जावेगी त्यों त्यों यहाँ का यह घन्घा भी बढ़ेगा ।
ऊन--थहदाँ के गड़रिय भेड़ के ऊन से भह ढंग
के कम्बल भी बनाते है जिन्हे गाँव के किसान
इस्तेमाल करते है! । मामूली चर्खे से ऊन कातकर
करा स कम्बल बुना ज!ता है । इस जिले में करोब
५,००० कम्बल सालाना बुन नाते है ।
सनइ-की खेताभी काफी होती है। छुट्टी के
समय गाँव के आदमी, औरत और लड़के सनइ को
तकली से कातकर सुतली बनते हें, इस सुतली क
बुनकर शदाबाद और हरदोइ के कार बगैरह टाट-
पट्टी बनाते है! । यह टाट-पट्टी चौड़ी पद्टियों की शक्ल
में हाती है । इन्हें जोड़ कर परदे बनाय जाते है ।
बिछाने के काम में भी यह आती है । गाड़ी की
নই
पाखरा লা বালা বাহ ले जान के लिय ভল্টা
ट्ियों स बनती है ।
সাল - नदियों के किनारों पर ...बिना बोय उगतो
है । इस मू ज॒ को रस्सियाँ यहाँ के सान और मज़-
दूर बनाते है! । औरते' इससे ढलियाँ भी बुनती हैं
५ गल्ना-यहां गन्न की खेती प्रायः ३०००
एकड़ भूमि में होती है। गांव में गन्न को बैलों के
भूगोल
कोल्ह से पेर कर रस निकालते हैं। इस रस को
बड़े बड़े कढ़ाओं में पका कर उसका गुड़ और राब
बनाते हैं, यह राब और गुड़ गांव में खूब इस्तेमाल
होता है ।
छव गन्ना मशीनसे भीपेगा जाता है। राब
स देशी शक्कर भी बनाई जाती है। शाबाद में
देशी शक्कर का एक छोटा सा कारखाना हे ।
६ तेल-तली वैलों स खोच जाने वाले कोष्ट
से सरसों और तिल्जी का तेल पेरते हैं । नीम ओर
मूंगफली का भी तेल पेरा जाता है लेकिन बहुत
कम | कपास के बीज (बिनौले) स भी वे तेल निका-
लते हें ।
७ पोस्ता--पोस्ता को खेती यहां क़्रोब ६४००
एकड़ में होती है । यह खेती सरकार की देख হন
में होनी है क्योंकि पोस्ता स अफीम निरलती है।
पोस्ता खान के काम आता है। कुछ तेल भी निकाला
जाता है। अफ्रीम इकट्ठा कर गाजीपुर के कारंखाने
में भेज दी जाती है ।
८ फल-शहाबाद के आम मलिहाबाद के
छामों की तग्ह मशहर हैं.। आसों के मोसम में बहुत
सा थम बाहर भेजा जाता है |
खसुलखास, सफेदा, लंगड़ा, दशे5 री, और मोहन-
ग श्रम यहां के मशहूर दै
बिल्ग्राम में अमरूद बहुत होता है। बाग
बढ़ते हो जाते हैं। यहां का अमरूद बहुत अच्छा
होता है। इलाहाबाद के अमरूदों की तरह यह भा
मशहर है | यद्दां से बहन अमरूद बहर जाता है
६ लकडी--बिलग्राम ओर सनन््डाला की लकड़ी
की नककाशी मशहर है । बिल्ग्राम के खड़ाऊं प्रसिद्ध
हे । सन््डील में अलमारी बगैरह अच्छी बनती हैं ।
प्रान्त के भिन्न भिन्न भागां में बढुइ स्थान-य खपत के
लिये भाड़ी, गाड़ी के पढ़िये वर्ग रह बनाते हैं ।
१० चप्रढदा“मर आर क़साइ घर म सार हय
जानवरों का चमड़ा यहाँ स कानपुर चला जाता है ।
बकरी का चमड़ा कानपुर में जूतों में अस्तर लगाने
के काम आता है| चमार किसानों के लिय चमगौधा
जूता बनात हैं, खेत सीचने के लिये चमड़े की मोट
भी बनाते हैं ।
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