चर्पट पंजरिका | Charpat Panjarika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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‰%8 शुः चपेट पंजरिका शः ११९ ] आता है। यह ही भूल ই! व्यवहारिक कार्य करी विशेष श्रावश्य- कता समी जाती है ! श्वर भजन तो फालत्‌ समय मे-श्नव- काश्च में किया जाय, एेस्म मान रक्खा है एेसा मानने बलों को न्त मे पश्वात्ताप ही होता है । जो हीरे फो छोड कर काँच.के इकडे जमा करने मे दी परिभम-कर रहा ह, उसे क्या पल होगा। इंश्वर भजन हीरा है, प्रपंच के पदार्थों की आसक्ति कांचका टुकड़ा है, चिद्वानोंने लोगोंके समझानेके लिये ईश्वर की भक्ति नव प्रकार की दिखलाई है और भक्ति' करने वालोंमें वह प्रसिद्ध हो गई हैः---(१) सर्वान्तयोभी सर्वव्यापक ईश्वर का तत्त्वनिष्ठ' पुरुष से श्रवण करना, इसको श्रवण कहते हैं।राजा परीक्षित ने इस प्रकारकी श्रवण भक्ति करके परब्रह्मकों जाना था । (२) परत्रह्मका- दूसरे श्रधिकारिर्योको श्रवण कराना, वारंवार सनन, कीलेन करना, इसको कीर्दन भक्ति कहते - हैं, शुकदेवजीने इसी. प्रकार ऋषि मण्डली में वारवार कथन करके परम पद्‌ प्राप्त किया.था । (३) परमात्मा का सर्वात्मक रूप से स्मरण करना स्मरण भक्ति है, इस प्रकार की स्मरण भक्ति प्रहादने की थी। (४) ञकार के अकारः उकार, सकार और असात्र खरूप का सेघन करना, अथवा भाया- रत लीला विग्रद अवतार आदिकके चरणोंकी सेवा करना अथवा परञहा सखरूप एेसा जो ब्रह्मनिष्ठ शुरु है उसकी पाद्‌ सेवा करना -पाद्‌ सेवन भक्ति है । इस प्रकारकी पाद्‌ सेवन भक्ति लक्ष्मीजी ने की थौ ! (५) विष्णके लीला निग्रह राम कृष्णादि अवतार -का, सालिम्राम आदि.मूति का श्चथवा - पर्ल खर्पर उत्तम




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