भारतीय धर्म एवं अहिंसा | Bhartiya Dharm Evam Ahinsa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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No Information available about केलाशचन्द्रजी जैन शास्त्री - Kelashchandraji Jain Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तुति
विद्रद्रर सिद्ान्ताचायं पं० कंलाशचन्द्रजी शास्त्री की यह पुस्तक
भारतीय धर्म ओर अहिसा' अनेक अर्थों में एक विशिष्ट और विलक्षण
कृति है। अहिसा, भारतीय विचार पद्धति, और विशेषकर जेन दक्षेन
तथा जैन जीवन-चर्या का मूलभूत सिद्धान्त है। इस विषय पर अनेक
पुस्तक लिखों गई हैं। जैनधर्म से सम्बन्धित कोई भी सम्मेलन हो, कुदेई
भी आयोजन या संगोष्ठी हो जिसमे किसी भी वक्ता को धर्म या सही
पर कुछ बोलना हो, अहिसा की खुद्री पर ही उसके विचारों का शक:
घुमेगा। इसी बीज पर विषय का पादप पनपेगा, पल्लवित गौर पुष्कित
होगा । महान आचार्यो ने अहिसा पर जो चिन्तन किय है, मते क्वनि
काय की भूमिका पर इसे प्रश्यश्षित करके कर्मों के आख्रव, कली
और निजंरा का जो व्यापक संधार स्वा है, वह् विष्व के समग्र दीनेन
शास्त्र, मनोविज्ञान भौर माजशास्त्रीय अध्ययन में इतना अपूर्ण कौर
अद्भुत है कि भारतीय प्रज्ञा इससे गोरवान्वित हुई है। बड़ी वात यह्
कि अहिसा-चिन्तन के इतने बड़े प्रसार को जीवन के साथ जोड़ने की
कला भी जेन तौर्थकरों गौर आचार्यो की देन है । अहिसाके विड
और व्यवहार को गहरी छाप अन्य धर्मे-प्रवर्तकों के चित्त्म ओर जीवन
निर्देश में प्रतिविम्बित है । ऋग्वेद के ऋषियों की ऋचाओं से लेकर
गांधी, अरविन्द गौर विनोबा के वचनों प्रवचनों तक यहू परम्परा
चली है | अहिसा-दर्शन राजनीति में सत्याग्रह के रूप में जवतरित्त
हुआ और उसने इतिहास में चमत्कार उत्पन्न किया। अहिंसा के
चिन्तन और प्रतिपादन में हिसा का संदर्भ स्वभावतः आता है, किन्तु
अब तक हिसा के विद्रुप की लोमहर्षक, प्राणों को हिला देने वाली
छवि आंखों से ओझल रखी गई है। कारंण यह कि इससे अनेक
धार्मिक सम्प्रदायो के ऋषियों मौर महापुरुषो की छवि धूमिल होती
है। 'घूमिल' शब्द तो बहुत श्षिष्ट है--वास्तव.में उनके द्वारा प्रति-
पादित हिसकं विधान भूष पर कालिख पोत दे कै,
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