शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति | Shastron Ke Arth Samjhane Ki Paddhati
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
591 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
(१) शब्दार्थ--शब्द का अर्थ (२) नयाथे- यह कथन किस
नग्र की मुख्यता से किया है यह समझना (३) मतार्थ-यह कथन
क्रिस प्रकार की मान्यता को सम्यक् कराने की मुख्यता से किया गया
है यह समझना (४) आगमार्थ-आगम में प्रसिद्ध अर्थ क्या है उससे
मिलान करना (५) भावार्थ-इष्टार्थ तो वीतरागता है अत: यह
कथन 'वीतरागता की साधना में हेय है या उपादेय है, यह
समझना । इस प्रकार पांचों प्रकारों का उपयोग करके शास्त्रों का
अध्ययन करे तो यथार्थ भाव भासन होकर आत्म-कल्याण का
मार्ग प्राप्त हो। उपर्यक्त पांचों प्रकारों में भी नयार्थ सबसे ज्यादा
समझने योग्य है | -
शास्त्रों का अर्थ समझने की मास्टर कञ्जोः
संक्षेप मे कटो तो-““एक द्रव्य का कायं उस ही द्रव्य मेँ अथवा
उस द्रव्य के कार्य (पर्याय) को उस ही द्रव्य का बतलाया हो” वह
निश्चय का कथन जानना । “एक द्रव्य का कार्य अन्य द्रव्य में
अथवा उस द्रव्य 'के कार्य (पर्याय) को अन्य द्रव्य द्वारा करना
, बतलाया हो” वह व्यवहार का कंथन जानना । जैसे मतिज्ञानरूप
आत्मा की पर्याय को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम द्वारा हुई
कहना, यह व्यवहार कथन हुआ और उसी पर्याय को आत्मा कहना,
यह निश्चय कथन है। व्यवहार के कथन-जैसी ही वस्तु को मान
ले तो ऐसे श्रद्धान को आचार्यों ने मिथ्या श्रद्धा कहा है और ऐसी
श्रद्धा को छोड़ने का आदेश दिया है-कारण ऐसी श्रद्धा करने से उस
दोष को टालनें का पुरुंषार्थ खंतम हो जाता है और श्रद्धा में
पराधीनता आ जाने से वह वीतरागता की वाधक हो जाने के कारण,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...