शास्त्रों के अर्थ समझने की पद्धति | Shastron Ke Arth Samjhane Ki Paddhati

Shastron Ke Arth Samjhane Ki Paddhati by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) (१) शब्दार्थ--शब्द का अर्थ (२) नयाथे- यह कथन किस नग्र की मुख्यता से किया है यह समझना (३) मतार्थ-यह कथन क्रिस प्रकार की मान्यता को सम्यक्‌ कराने की मुख्यता से किया गया है यह समझना (४) आगमार्थ-आगम में प्रसिद्ध अर्थ क्या है उससे मिलान करना (५) भावार्थ-इष्टार्थ तो वीतरागता है अत: यह कथन 'वीतरागता की साधना में हेय है या उपादेय है, यह समझना । इस प्रकार पांचों प्रकारों का उपयोग करके शास्त्रों का अध्ययन करे तो यथार्थ भाव भासन होकर आत्म-कल्याण का मार्ग प्राप्त हो। उपर्यक्त पांचों प्रकारों में भी नयार्थ सबसे ज्यादा समझने योग्य है | - शास्त्रों का अर्थ समझने की मास्टर कञ्जोः संक्षेप मे कटो तो-““एक द्रव्य का कायं उस ही द्रव्य मेँ अथवा उस द्रव्य के कार्य (पर्याय) को उस ही द्रव्य का बतलाया हो” वह निश्चय का कथन जानना । “एक द्रव्य का कार्य अन्य द्रव्य में अथवा उस द्रव्य 'के कार्य (पर्याय) को अन्य द्रव्य द्वारा करना , बतलाया हो” वह व्यवहार का कंथन जानना । जैसे मतिज्ञानरूप आत्मा की पर्याय को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम द्वारा हुई कहना, यह व्यवहार कथन हुआ और उसी पर्याय को आत्मा कहना, यह निश्चय कथन है। व्यवहार के कथन-जैसी ही वस्तु को मान ले तो ऐसे श्रद्धान को आचार्यों ने मिथ्या श्रद्धा कहा है और ऐसी श्रद्धा को छोड़ने का आदेश दिया है-कारण ऐसी श्रद्धा करने से उस दोष को टालनें का पुरुंषार्थ खंतम हो जाता है और श्रद्धा में पराधीनता आ जाने से वह वीतरागता की वाधक हो जाने के कारण,




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