नवसद्भाव पदार्थ निर्णय | Navsadbhav Padarth Nirnay
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
ही रहेंगे, ओर निन्दा करने घाले निन्दक द्वी रहेंगे, यह किसी को अ-
प्रिय लगे तो श्चमाता हं परन्तु न्याय बाते तो निःशंक से हो कहना
उचित है खामीने तो खकूत ढाछों में किसी का भी नाम के के अप-
शब्द नदीं कदा है परन्तु होणाचारी द्रन्यलिद्धियों ने अनेकानेक पुस्तक
छपाके खामीजी की निन््दा ऐसे ऐसे शब्दों में की दे कि जेसे कोई
मदिरा জী नशे में चूर दोके नेक आदमी को गाली गछोज देते हैं,
किन्तु भल्ठे आदमी को तो हल्का शब्द भी मुखसे उच्चारण करते शरम
आती है जो जातिवन्त कुर्वन्त ओर कछजावन्त दोगा वो तो किसी
का नाम ॐेके दर्भिंज भी भपराब्द् नदीं निकारेगा परन्तु अधम जाति-
वाला केवर पेटार्थीं शुणशरून्य मानव शुद्ध साधु मुनिरर्जो से देष
कारके अनेक म्पुपा आल दैते नदीं छाजंगे जिनकी भदत निन्दा करने
को दै उन्दः निन्दा किथे विना जक नहीं पड़ती नीति शास्त्रों में कहा
है---
नना परवादेन रमते दुर्जनो जनः।
काक सवेरसान् भुक्ता चिना मेध्यं न वृप्यति ॥
अर्थात् कागछा अनेक रस खाता है परन्तु भ्रष्टा में मुख दिये
चिना तृप्त नहीं दोता दै चैसे द्वी निंदक निन्दा किये विना खुश नहीं
होता । इसलिए दमारा कहना है है प्रिययरो ! मत पक्ष को तज के
सत्यासत्य का निर्णय करो यह भन्नुष्य जन्म स्यात् भस्यात् नहीं मिलने
का है, मदहाजुभावों! आप छोगों से प्रार्थना है कि हें पमाव को
छोड़कर जिनभाज्ञा धर्म धारण करो तव कुगति से बचोगे और अपनी
आत्मोन्नति होगो-- आपका दितेच्छू
भी ° जोहरी युलाव्चन्द लूणीयां
পম
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