खडीबोली के गौरव ग्रन्थ [भाग 1] | Khadi Boli Ke Gaurav Granth [Part 1]

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अयोध्यासिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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प्रेमचंद - Premchand

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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मैथिलीशरण गुप्त - Maithilisharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) मनोभावों पर भी एक मुक्त पुरुष का सा उसका अधिकार है, इस इृष्टिट से उसके चरित्र में थोड़ी अस्वाभाविकता आंगई है। इस सम्बन्ध मे हमारे हदय में सन्देह न उठे, इसी से नाटककार ने मल्लिका को कई पात्रों से बार-बार 'देवी' कहलवाया दै । श्यामा उसे देखकर कहती हे. “जिसे काल्पनिक देवत्य कहते हैं, वही तो सम्पर्ण मनुष्यता है ।” मल्लिका के ही शब्दों में हम मल्लिका के लिए कह सकते हैं कि उसे “केवल स्त्री-सुलभ सोजन्य और संवेदना तथा कर्तव्य श्रौर धर्म को शिक्षा मिली है ।” इनमें से एक-एक ग्रुण का उसने ऐसा उज्ज्वल उदाहरण उपस्थित किया है कि मस्तक अद्भा से स्वयं नत हो जाता है । मागंधीको हम तीन रू में देखते हें--महारानी के, वेश्या के और आम्रपाली के | ये तीन रूप मानो उसके जीवन-नाटक के तीन शङ्कु हैं । रानी के रूप में वह एक रूप-गर्बिता रमणी है पर तिरस्कृता होने से विक्षुब्य सी पाईं जाती है । अतः पति के प्यार को वह छल से प्राप्त करना चाहती है | उदयन के आने पर उसे गान से मोहित करतो हुईं वीणा में नवीना दासी के द्वारा साँप का बच्चा रखवा ऋर व्यंग्य के द्रव में पद्मावती के प्रति सन्देह का विष मिलाकर महाराज के हृदय पान्न में उड़ेल्न देती है। उसका छल उस समय काम कर जाता है। जब उसे पता चलता दहै कि उसका षड्यन्त्र प्रकट होने वाला है तब अपने राजमन्दिर में आग लगाकर भ ग जाती है । फिर हम उसे श्यामा नाम से काशी की प्रसिद्ध वार विल्ा- सिनी के रूप में पाते हें | रानी के खूप में उसका प्रभावशाज्ञी रूप, मद्रा सेवन, अठृप्त वासना और छल मानो वेश्या-जीवन की भूमिका थे । शेलेन्द्र डाकू की वह अच्चुरक्ता है। भयानक्र रात




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