साहित्य और मनोरंजन | sahitya aur manoranjan

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sahitya aur manoranjan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ( ७ ) का पुट चौर स९५ म आनन्द পম र।७२ है। उसके साबुय का हम तिरकार नहीं कर सकते । छल हमें उसके पारस नहीं त्ते जा सकती ) उसके लोक में अवश करते के জি নথ 9 এখান ही होती, घरन्‌ जब तक हस उसके साथ सह।उभूति नहीं रखते वास्तविक आनन्द से वंचित रहते हैं। सह।उुभूपिं उसके ९6९५ +ी कुजी है । कविता ल्लोक में प्रवेश पाने के लिए संबदना हमारी योग्यता का भ्रभाणुप्ज है । ह जले शम मे कनि क पाथी विछ पद चलि दूतः दि को साकार देखते हैं। कवि ही तो विधि का अशभ्रण है, नहीं, नहीं, विधि का भी विधाता है क्योंकि बह विधि को भी अयेन यार, पन्मता-विधाइता ता हैं। उसका आदेश किवना ০৭ है ) शैक्षा; দি आर नष्श उसके ध नी नौ ५ नाचते रहते हैं।॥ साकार को निराकार और निराकार को साकार ' बनाने में उसको अभोष शक्ति श्रात्त है। पह शद्ध को भांद्रि हमारे भीतर और আহহ को এন बातें जानता है । उसकी ४चछा-शकि अन्न-भावा से किसी भाँति कम चहों । डसके इंगितों में पकड़ और प्रभाव मैं वशीकरण होता है। फितनी धरधना; कितेदी उपालना और कितनी सपस्था के पश्याप ६४ में से 3७ ही जद्य को पहिचान पाते हैँ) फिन्पु अपना संबल হত जब म कवि के लाय उठते हैं. तो जायों में नलानन्द्‌ को सी सदानासु- - भूति हो जाती है। उसकी च्यॉज খুনি के सामने भाया को নাহ <स जाती है! छष्टार के डंड। से पीड़ित भदम सी कनि




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