स्कन्द गुप्त | Skand Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चरित्र चित्रण की शैली १३ ओर पोपक हो जाता है। सुरमा, विजया, मागन्धी, दामिनी श्रादि का प्रेममाव आत्मसंयम के बांध को तोड़ कर उदृहुलता मौर विलासिता के गहरे गत॑ में जा पड़ता है। प्रसादः की दृष्टि में संयमपूर प्रेम द्वी श्रेयस्कर है। उसमें ही जीवन का कल्याण और सुख शान्ति निहित है। उस पावन प्रेम-गद्जा में अवगाहन करने से मानव मनःपूत হী जाता है| 'प्रसाद' के प्रणय चित्रों के अन्तस्तल में विश्वभेम की यही मूलधारा प्रायः सर्वत्र देख पड़ती है। .. अ्रसादः के स्री पात्रों में प्रेम के अतिरिक्त मानव हृदय की अन्य उदात्त वृत्तियाँ भी चित्रित की गई हैं। जातीय गौरव, रा्ट्रश्रेम, ओर विश्व कल्याण कामना आदि उदात्त वृत्तियों से उनकी नारियाँ गोरवान्वित हैं। वे अपनी सत्मेरणा से पुरुषों का भी प्रोत्साहन ओर मार्ग प्रदर्शन करती हैं। अलका राष्ट्रमेम की सजीवमूर्ति है। बह अपनी ओजमयी वाणी से समस्त श्राय्योवतं में राष्ट्रीयता की एक लहर दौोड़ा देती है। वह अपने देशद्रोही भाई आम्भीक के हृदय में पूर्व कृत कर्मों के लिये अनुताप तथा साहस और सच्ची देशभक्ति प्रस्फुटित करती दै । देवसेना श्रपनी प्रभावोत्पाद्क .सङ्गीत लहरी से भारत के बचे वच्चे के, हृदय मे सोया हुआ देशप्रेम जगाती फिरती दै। मनसा नाग ज्ञातिको जागरण का.पाठ पदाती हुई उनमें जातीयता को सजग ओर सचेष्ट करती है । नारी का. सतीत्व और आत्मसम्मान उसकी सबसे बड़ी सम्पदा है। भारतीय नारी उसकी रक्षा के लिये सदा से ही प्राण




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