गणेश पुराण - एक अध्ययन | Ganesh Puran - Ek Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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से सन्दर्भित विभिन्न क्षेत्रों में शोध व विश्लेषण की बहुत संभावनाएँ बची थीं । ऐतिहासिक संदर्भा में गणेश की परम्परा, महत्व, नवीन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिस्थितियों में उनके उद्भव व विकास की आवश्यकता का परीक्षण करना अभी भी शेष था । परिवर्तित होती भौतिक परिस्थितियों के अनुरूप मानवीय आवश्यकताएँ भी बदल जाती हैं। बदलती भौतिक परिस्थितियाँ और मनुष्य के धार्मिक जीवन पर इसके प्रभाव के अध्ययन के पश्चात्‌ यह निष्कर्ष निकाला गया कि सामाजिक परिवर्तन मनुष्य को नये विचारों और नयी आकांक्षाओं की प्रेरणा देते हैं, जिससे धार्मिक व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं का नवीनीकरण होता है। आधुनिक इतिहासकारों ने गणेश को एक कालक्रमिक ढँचे में रखकर परीक्षण करने का प्रयास किया है, जिसमें गणपति का आविर्भाव हुआ तथा उन कारणों को भी तलाशने की कोशिश की है कि वह क्यों धीरे-धीरे विभिन्न धार्मिक धाराओं में स्थान बना लेने में सक्षम होते हैं। इन नवीन विचारकों व विश्लेषकों ने यह परीक्षण करने का प्रयास किया कि कैसे गणेश पर ब्राह्मणवादी मुलम्मा चढ़ाया गया। कैसे गाणपत्य सम्प्रदाय मध्यदेश से बाहर फैलकर सीमांतों तक पहुँच गया। और कैसे इस विस्तार में प्रांतीय विश्वासों व परम्पराओं का समावेश होता गया। कैसे और कब गणपति वणिकों व व्यावसायिक समूहों से जुड़ गये। क्यों गाणपत्य सम्प्रदाय अस्तित्व में आया और कैसे . गणपति विभिन्न धर्मां यथा बौद्ध, जैन, स्मार्त में भी महत्वपूर्ण बन गये। इन विचारकों का विश्लेषण विश्वासों और व्यवहार की प्रांतीय विविधता के साथ-साथ उन तत्वों पर भी प्रकाश डालता है जो किसी देवता को वृहवद व विस्तृत फलक पर सार्वमौमिकता प्रदान करते हैं । इतना ही नहीं, इन विचारकों ने गणपति से सम्बन्धित पौराणिक कथाओं और उन पर आधारित कर्मकाण्ड एवं उपासना का विशद्‌ विश्लेषण भी किया है। गणपति के पौराणिक व्यक्तित्व में समाहित विभिन्न अन्तर्विरोधों और आयामों के कारणों पर भी प्रकाश. डाला गया है। मिथकीय-पौराणिक गणपति की भूमिका तब ज्यादा स्पष्ट होती है जब उनकी तुलना पौराणिक देव समूह के अन्य द्वितीयक देवताओं से की जाती है। स्पष्ट है, आधुनिक शोधों व नवीन विश्लेषणों में गणेश को उनकी मिधक व परम्परा के नवीन...




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