जैन ग़ज़ल गुल चमन बहार | Jain Gazal Gul Chaman Bahar

Jain Gazal Gul Chaman Bahar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७) ॥ । | ठ निवाद्धेः पर भाना, इन्सान को लौलिपि नदी ¦ উজান্ধ শী सड, परनार के परथमम । ३ ॥'चोरसो सत्ताणुवां कानून पे, लिखा दफा | सजा दृाक्षिमि से पिल न परनार के परसग स | ४॥ जब' सूंत्री নম মলা) দন্ত दखला, कुरान बाइबल मे लेखा, पर नार के प्रसंग से ॥ ४॥। সি रावण कीचक भरि गप, द्रौपदी सिया के वास्ते | मणीर० पर्‌ नके गया, परनार के परसंग से ॥ ६ ॥ नहर वभ तलवार से; अबन प्लल्जिप बदकारने | हजरत अली पर वहारं की, परनार के परसंग से ॥ ७1) कत्ते को कृत्तां काठता, इत्लं नर नरको करे | पल मे मोदञ्मत टूटी, परनार के परसग ५ से ॥ ८ ॥ किसलये पैदा हुवा, अथ देहया इव सोचते । रदे चोथमलं अवर सक्र कर्‌, एरनार के पर प्गसे ॥ ६ ॥ ज पूवेदत्‌ । ग़ज़ल ( बद सोबत निपेध पर ) + अगर चाहे आराम तो, जाहिल की सोबत छोडदे | पान ले नसीहत पेरी, जाहिल' की सोदत छोडदे || ठेर ॥ झगर श्रकरमन्द है, होशियार णो है तूं दिला । भूल के अंखत्यार पत कर, नाहि को सावत छोडदे ॥ १ ॥ नाहिल से मिलतः स्त रहे, मानिद्‌ शक्कर सीर के । भाग' मुझआफिक तौर के जाहिल फी सोवत জীবন || २॥ दुर्मन भी अङ्कपंद बेहतर, रवे जादि दोस्त के | प्रहेजगारी है भी, जाहिल = न~~ পিপিপি ~~~ -~----------- ----*+---~




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