श्री दशवैकालिक सूत्रं | Shree Dashvaikalik Sutram
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तृतीय अध्ययन १३
ग्रन्दयार्ण--- ३६ (भ्रामए) सचित्त (सोवच्चले) सोव-
चल-सचल नमक, ४०, (सिधवे लोणे) सैन्धव-सीघा नमक, ४१
(रोमालोणे) रोमा नमक-रोमकक्षार, ४२ (समूह्) समुद्र का
नमक, (य) मौर ४३ (पसुखारे) ऊसर नमक, (य) ओर ४४
(श्रामए) सचित्त (कालालोणे) काला नमक का सेवन करना ॥८॥
घूवणे त्ति वमणे य, वत्यी कम्म विरेधणे ।
भ्रजणे दतवणे य, गायाब्भंग विभरुसणे 11811
धन्वयार्थ-- ४५ (चुवणे त्ति) अपने वस्त्र आदि को घूफ
देकर सुगन्धित करना, (य) और ४६ (वमणे) औषधि आदि से
वमन करना, ४७ (वत्थीकम्म) मलादि की छुद्धि के लिए वस्ती
कर्म करना, ४८ (विरेयणे) जुलाब लेना, ४६ (अजणे) आँखों
में अजन लगाना, (य) और ५० (दतवणे) दतौन से दात साफ
करना, मस्सी आदि लगाना, ५१ (गायान्भग) सहस्तपाक आदि
तंलो से शरीर कीं मालिश करना, (य) गौर ५२ (विभूसणे)
शरीर को विभूषित करना ॥६£।॥
सन्वमेयमणाइन्न, निरगथांण महेसिण ।
संजमसम्मि य जुत्ताणं, लहुभूय विहारिण ॥१०॥
प्रन्ण्यार्ण-- (सजमम्मि) सजम मे (य) भौर तप में
(जुत्ताण) लगे हुए (लहुभूयविहारिण) वायु के समान अप्रति-
वन्ध विहार करने वाले (निग्गथाण) निग्रन्य (महेस्िण) म
ियो के (एय) ये (सव्व) सव (श्रणांदन्त) अनाचीर्ण-अनाचार
हैं ॥१०॥
पचासव परिण्णाया, तिगुत्ता छसु सजया ।
पचनिगहणा घीरा, निम्गथा उज्जुदसिणो । १९११
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