घनानंद शतक | Ghananand Shatak
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| हे ]
घनामन्द के इन सदेशों की व्याख्या से यह स्पष्ट लक्षित होता है कि
उनका प्रेम अत्यन्त यंभीर-थत | प्रेम की एकनिष्ठता के कारण उनका बिरह-
वन् द्वय पर गहरा प्रभाव डालता है | घनानन्द के पूरे साहित्य को पढ लेने
पर प्रतीत होता है कि वे बढ़े घीर, शान्त, मौनाम्यासी एवं शोकाकुल मुद्रा
मे रहने वले दुक प्रणयं ये ¡` उनमें चुल कौ दति का श्रमाव सा ग्रतीत
होता है। इसोलिए जहाँ सूरदास की गोपिकाएँ विरह-काल में कृष्ण के
आने पर कुब्जा आदि को लेकर श्रनेक अ्नुरजक कारणों की उद्भावनाएं
करती हैं, वहाँ घनानन्द् का कवि गंभीरता का पल्ला पकड़े हुए. इस विषय में
प्रायः मौन रद्दता है । केवल एक या ठो स्थलों पर ही वह--
] कान्ह परे बहुतायत में, श्रकिलैन की वेदनि जानौ कहा ठुम ।”शआरदि 1৮
क कर चुप हो नाता है । यह विरदयी कवि श्रपने पल-गल का विरद-निवेदन
आए यदह्द कहीं नद्दीं कहता । हाँ प्रियतम को निष्ठर निर्दयी, कय कठोर, विसासी
अमोदह्दी आदि विशेषणणों से विभूषित भ्रवश्य करता है--
““मए अति निदुर मिठाय पहिचान डारी,
इमें जक लागी याहदी दुख हाय हाय है ॥
२५ ১ भ
मदा निरदई, दई कते के जिवाऊं नीव,
वेद्न कौ वढ़वारि कहौ लौ दुराहृए 11
> ১৬, ৯
“हाय निरदई को हमारी संधि केसे आई
कौन विधि दीनी पाती दीन जानिके मर्ना |
> ১৫
“आपतुर न होहु नैकु फेट छोरि वैटो
मोद्दि वा विसासी को है ब्योरो वूमिवों घनों ।?
इन मन के छोभ से भरे हुए विशेषणों से सम्बोधित करके ध्रिय से कह्दे गए.
पद् द पनानन्द् कौ सर्व श्रेष्ठ स्वनाए हैं । अपने प्रेम को एकनिष्ठता के पूर्ण
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