आगम पुरष | Aagam Purash

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Aagam Purash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सामने और-और साघुओ की मुख-मुद्राएँ आ खडी हुईं एक कट्‌ रहा है-- चनो साघु, आराम से जिन्दगी वसर होगी” दूसरे का कथन है-“चेला वन जाओ, फिर सव सिखा दुगा तीसरे का सुर है--'शिष्य बन जाओ, सम्प्रदाय का प्रमुख बनते देर नहीं लगेगी चोथे के शब्द ह“जैसा सत मँ हं, वैसा तुन्ञे कही नही मिलेगा--हम सयम का दृढता से पालन करते है नानालाल को दन तमाम उन्तरो मे कोई समाधान नही मिला। मत्य या सम्यर्वत्वं यदि कही मिला तो युवाचार्य श्री गणेशीलालजी की वाणीमे।वे कह रहे हैं-- पहले गुरु को परखो, उसके बाद दीक्षा लो। दीक्षा के बाद तो अपनी आत्मा को तप-की-भट्टी पर चढाना ही है। अभी तो आये हो। रुको। देखो। मुझे भी देखने का अवसर दो।' नानालाल श्रद्धाभिभ्रूत हो उठे। उन्हे लगा कि में जन्म-जन्मान्तर से जिस सदगुरु की खोज में था वह मुझे मिल गया है। उन्होंने मन-ही-मन उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया। गुरु को तो परख लिया, किन्तु अभी खुद को तो इम्तहान देना था। जीवन का लगभग उन्नीसर्वां वसन्त चल रहा था। सत्य-की-खोज़ के लिए मन मे घनीभूत छटपटाहट थी। कपासन के तालाब के किनारे आम्रवृक्षो के कुज के मध्य एक विशाल आम्रवृक्ष के नीचे युवाचार्य गणेशीलालजी ने दीक्षा की महिमा और उसके स्वरूप पर मार्मिक प्रवचन देते हुए बैरागी नानालाल को मुनिश्री नानाला के मनोन्ञ रूप मे कायाकत्पित क्रिया! नानालानजी युवानार्यभ्री का प्रथम कर-स्पर्भ पा कर ृत्यक्रृत्य हो -उटे! उनके मन-मस्तिप्क मे गृंजनं लगा-दीक्षा का अर्थ है अचचल चित्त से मुवित-के-मार्ग पर मत्‌ अप्रमत्त गतिशील होना। दीक्षा की सार्वकता ही उसमे है नि वह साधना-पथ थग दीपकः बने अर जह्‌ भी तमस्‌ हो वरहा एक শুন दीपस्तम्भ बनाये।'




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