अग्निपथ | Agnipath

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Agnipath by कमला जैन - Kamla Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाथ क्यो वधे ? ই “चाह री मर्जी तुम्हारी, मेरे घुटने मे लग गई न बताओ पत्थर क्यों फेका 7 “तुमने मेरे हाथ क्यों वाधे ? मुझे क्‍यों छुआ ?” युवक ते चकित होते हुए हैरानी से कहा-- “क्या हो गया छू दिया तो ? मै कोई हरिजन हूँ क्या ?” हरिजन नही हो तो क्या हुआ, मेरी मा ने कहा है कि--किसी भी पुरुष को छूना नही चाहिये | अगर कोई लडकी किसी को छू ले तो *।” “तो क्‍या ?” बालिका के मुंह की वात छीनते हुए युवक ने पूछा और बडी उत्सुकता से उस वालिका के चेहरे पर्‌ अपने नेत्र जमा दिये) “तो वह उसका पति हो जाता हैं । अब तुम्ही बताओ मैं किसी और से शादी कैसे कर सकती हूँ?” युवक उस ग्यारह वर्ष की लावण्यवती कन्या उम्रा क्री ओर बोखलाया- सा देखता रहा । वडी कठिनाई से उसके मुह से शब्द निकले--- “तुम किसी और से शादी नहीं कर सकती ?” “कैसे कर सकती हूँ, तुमने मुझे छू जो दिया। बार-बार क्यो उसी वात को पूछते हो, समझ में नहीं आता क्या ?” बालिका ने गम्भी रता का नाटक करते हुए कहा किन्तु उसकी अल्हडता वेसी ही थी । युवक तो उस नन्‍्हींसी जान की यह गभीर वात सुनकर अभिभूत-सा खडा था । अपने-घुटने मे हो रहे दर्द को भी वह भूल गया । कुछ सोचकर उसने निश्चयपूर्ण स्वर मे कहा--- “अच्छा मुझसे तो हो सकती है न तुम्हारी शादी ? “हाँ, तुमसे तो हो सकती है ।” बालिका ने वडी समझदारो से बॉये-दाँये दोनो तरफ एक-एक वार सिर को घुमाते हुए कहा । “डीक, तो मैं फिर तुमसे ही शादी कर लू गा ।” “मुझसे कर लोगे ? शादी ? ओर उस काली लडकी का क्‍या होगा जिससे तुम्हारी सगाई हुए दो साल हो चुके है ? हमारे गाव की ही तो लडकी है वह, क्यो जी | पैसा देखकर ही सगाई कर ली क्या ” पैसा तो तुम भी कमा कर ला सकते थे।”! युवक फगल-सा हुआ जा रहा था। सोच रहा था कि क्‍या इसके




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