प्रेमोपहार | premophar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृव-भारत के गाँव १७
यहाँ विद्यार्थियों के लिये अन्न-चल्र का समुचित प्रबंध सरकार
स्त्रय॑ करती थी । यहाँ के राजा खजाने का एक पेसा भी छूना
पाप समभते थे। यहाँ के लोग देश-विदेश परिभ्रमण कर,
“श्यं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ; उदारचरितानां तु
অন্তু कुटुम्बकम् ।* ८ यद मेरा है, वह दूसरे का; ऐसा
मंद चुद्धिवाले कहते हूँ | ददार मनुष्यों के लिये तो सारा
संसार ही अपना कुटु व है। ) का पाठ पढ़ा समानता का व्यव-
हार करने का महोपदेश करते थे | क्या आप घ्राज के सास्य
चाद में इससे सु दर व्यवस्था पाएँगे ?
रामायण की बातें पुरानी हैं, इसमें मतभेद हो सकता हे ।
महाभारत भी छोड़ दोजिए | चंद्रगुप्त, अशोक, हपेवद्ध न तथा
विक्रम का ही शासन-काल लीजिए । विदेशी राजदूत अपनी
डायरी में क्या लिखते हँ--
“राज्य में प्रज्ञा सब प्रकार सुखी थी | कला-कीशल, उद्योग-
শপ उन्नति के शिखर पर थे। सभी अपने-अपने धर्म पर
चलते थे। विद्वानों का आदर था। विद्यार्थियों के अन्न-वस्त्र
का उचित प्रबंध था। खोजने पर भी कोई अपद नहीं मिलता
था | कोई मूठ नहीं बोलता था। गाँव साफ़-सुथरे थे। कोई
भूलकर भी मादक द्रव्य ( ताड़ी, शरात्र; गाँला, भंग ) नहीं
पीता था | शासन कमेदियों द्वारा होता था। चोरों का भय न
था, अतः घरों में कोई ताला न लगाता था।'
अशोक के समय में बने स्तंभ अब भी पुकार-पुकारकर
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