रेत और झाग | Ret Or Jhag

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Ret Or Jhag by खलील जिब्रान - Khalil Jibranमाईदयाल जैन - Maidayal Jain

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खलील जिब्रान - Khalil Jibran

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माईदयाल जैन - Maidayal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रेत और फाग ११ हुआ, में प्रसन्‍न हूं कि वह मर गया है, क्‍योंकि यह संसार हम दोनों के लिए काफी नहीं है 1 চা রণ < में एक युग तक खामोश और ऋतुओं से अनभिज्ञ मित्र देश की रेत में पड़ा रहा । इसके वाद सूर्य ने मुझे जन्म दिया और मैं उठ खड़ा हुआ; श्रौर में दिनों में गाता हुआ और रातों में स्वप्न देखता हुआ नील नदी के किनारे-किनारे चलने लगा । भ्रव सूर्यं अ्रपनी सहलो किरणों से मुक्पर श्राक्रमण कर रहा है, जिससे में दुवारा मित्र की रेत में सो जाऊ । पर यह्‌ कितनी अ्रगोखी वात झौर पहेली है ! जिस सूर्य ने मेरे जीवन तत्वों को इकट्ठा किया, श्रव वही उन्हें च्लग- अलग नहीं कर सकता । फिर भी में हृढ़ता और विश्वास के साथ नील नदी के किनारे चल रहा हूं । © ৯ याद रखना भी मिलन का एक रूप है । < © भूल जाना भी स्वतंत्रता का एक रूप है । ॐ © हम काल को अ्रसंख्य नक्षत्रों की चाल से मापते हैं। और दूसरे आदमी काल को उन छोदे-छोटे यन्त्रों से मापते हैं जिन्हें वह अपनी जेवों में लिए फिरते हैं । फिर तुम ही मुझे बताओ, कि में और वह दोनों एक ही स्यान पर एक ही समयमे कंसे मिल सकते हँ?




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