अपरनाम भगवती आराधना | Aparnaam Bhagwati Aaradhna

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Aparnaam Bhagwati Aaradhna by बिशम्बर दास महाबीर प्रसाद जैन - Bishambar Das Mahabeer Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ च ) विषय पृष्ठ , विषय पृष्ठ | विषय बरृष्ठ कुरील चष्ट मुनि ४७१ | क्रोध कृत दोष जीतने का उपाय ५०१ | ति्यंचगति के दुख ५४४ यथा छुन्द जाति भ्रष्ट मुनि ४७३ | मानकछृत दोष त ५०३ , देव मनुष्यगति के दु.ख ५४६ संसक्त र ४७४ ¦ मायाजार कृत दोष कर 4৩৬ | কমহিষ অলিল वेदना को कोई दूर नही इन्द्रियासक्त मुनि अ्रष्ट है ४७५ , लोभ कृत दोष টা ४०६ कर सकता ५५२ इन्द्रिय कषाय बिजयी के ज्ञान | निद्रा विजय का उपाय ५०६ | संयमो को मरण भला एर संयम कार्यकारी है ४८१ | तप महिमा ५०६ । লাহা ठीक नहीं ५५३ बाह्य साघुकासा ँध्राचरण और | शरीर सुख में श्रासक्त के तप में दोष ५१० | कर्म सबसे बलवान है ५५४ ग्रन्तरंग मलीन कृथा है ४८४ श्रालसीकेतपमें दोष ५१० ¦ श्रसात मे क्लेशित होना उचित नहीं ५५५ बाह्य प्रवृति शुद्धकर भ्रात्माकी शुद्धता ' तपदच रण के गुण ५११ , ब्रत भंग पाप है १५७ भ्रपेक्षित है. ४८४ | निर्यायकाचार्यं के उपदेशा से संस्तर प्रत्यास्यान का भंग मरण से बुरा है ५५८ श्रम्यन्तर शुद्ध के बाह्य क्रिया नियम प्राप्त साधु प्रसन्न होता है ५१६ ; आहार की लंपटता सर्व पाषों को से शुद्ध होगी ४८४ | उपदेरा सुन, संस्तर से उठ, गुरू वन्दना कराती है. ५५६ बाह्य शुद्धता भ्रम्बन्तर शुद्धता का | झादि किस प्रकार करे ५१७ | घ्राहार लम्पटी के दुष्टान्त ५६२ सूचक है ४८५ ; रे४ सारणा भचिकार ¦ श्राहार लम्पटी के क्लेश ५६५ इन्द्रियासक्त व्यक्तियों के दृष्टान्त ४८६ क्षपक के देने योग्य आहार ५१६ | शरीर ममत्व त्याग का उपदेश ५६७ कोघ कृत दोष ८८७ ' मपक के वेदना होने पर प्रन्य शी । ३७ है का রর ५७९१ का कतव्य ५२० । इष्टानिष्ट में राग ढ्ं ष नही करना ५.७२ 16788 व १ ३५ कवच प्रधिकार ५२४ । समस्त पदार्थों में ससममाव रखना. ५७३ मायाचार कृत दोष ४९२ शिथिलता दूर करने हेतु मीठे बचन साध्‌ की मंत्री कारुण्य थुदिता एवं मायाचारी कुम्मकार का दुष्टान्त ४६२. द्वारा साधु को संबोधघना ५२५ उपेक्षा भावना का स्वरूप ४७४ लोभ कृत दोष | साधु को चलायमान नहीं होना ५२७ | ३७ ध्यान श्रलिकार ५७५ मृगध्वज का दृष्टान्तं ४६४ विभिन्न परिषह सहने वाजे दृष्टान्त ५३१ | क्षपक शुभ ध्यान करता है, अशुभ नहीं » कार्तवीर्यं का दृष्टान्त ४६५ | नरक भे उष्ण वेदना ५३८ | आर्त्त ध्यान के मेद ५७६ शामान्य इन्द्रिय कषाय जनित दोष । नरक में शीत वेदना ५३८ | अनिष्ट सयोगज श्रार्त्तृध्यान % झौर निराकरण के उपाय ४६५ | नरक के अन्य दुःख ५३८ , इच्ट-वियोगज अर्त्तध्यान ५७०




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