स्वतंत्रा की पृष्ट-भूमि | Swatantrata Ki Prishthi-Bhoomi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Swatantrata Ki Prishthi-Bhoomi by चन्द्र शेखर भट्ट - Chandra Shekhar Bhatt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चन्द्र शेखर भट्ट - Chandra Shekhar Bhatt

Add Infomation AboutChandra Shekhar Bhatt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एक दिन एक नवयुवक मेरे पास आया र्षिं लिखने की मेज पर वैठा बैठा कुछ लिख रहा था। वह बिना प्रणाम किये धम्म से मेरे पास की कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसके चेहरे पर चिन्ता की रेखाए स्पष्ट दीख रही थी । ने उसे जरा आश्वस्त होने दिया और फिर नौकर से उसे एक गिलास पानी देने को कहा । जव वह ॒ कुछ आइवस्त हुआ, तो बोला मैं आप से एक सलाह लेने आया हूँ। कहिये ? किस तकलीफ भें आप घिर गये ? कौन सी चिन्ता ने ˆ“ ^ मेरे कहने के पूर्व ही वह फूट फूट कर रोने लगा। बोला--कुछ मत पूछिये । मेरा सर्वताश हो चुका है, एक प्रकार से मै समाप्त सा ही हो गया हूँ । मेरा हर उपाय व्यर्थ जा रहा है। मेरी हर योजना निष्फल होती जा रही है । मैं सोने के हाथ लगाता हूँ तो वह मिट्टी बन जाती हे ) मैं ससार का सबसे अधिक पीडित, दु खी और दरिद्र व्यक्ति हूँ। मैं ' (और आगे के शब्द उसकी हिंचकियो मे खो गये) -पर किस प्रकार ?--मैने पूछा । उसने आद्यन्त अपनी राम गाथां सुनाई 1 वस्तुत वह्‌ एक दीन हीन नवयुवक था । उसने वहुत बहुत कष्ट सहे थे । काफी असें से वह बेरोजगार था । उसके एक भारी परिवार था, परन्तु वह अपने बच्चों की जिक्षा की व्यवस्था भी ठीक प्रकार से नही कर सकता था। जीवन की चक्की में चह बुक सा गया था। कष्टो के थपेडो से वह विचलित सा हो गया था, और लोगो के व्यग वाणों से वह विध सा गया था । मैने उसे धीरे धीरे समझकाना प्रारम्भ किया । मैंने बताया कि अब सिर्फ एक ही रास्ता रह गया है, और वह्‌ है अपने जीवन में उत्साह চি




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now