बन्धस्वामित्व - तीसरा कर्मग्रन्थ | Bandha Swamitva - Tisra Grantha

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Bandha Swamitva - Tisra Grantha by देवेंद्र सूरि - Devendra Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११ | धवाचीन और नवीन तीसरा कमग्रन्थ-- ये दोनों, विषय में समान हैं । नवीन को अपेक्षा प्राचीन में विषय-बर्णन कुछ विस्तार से किया है; यही भेद है। इसी से नवीन में जितना बिष्य २५ गाथाओं में वर्शित है उतना ही विषय प्राथीन में ५४ गाथाओं में। ग्रन्थकार ने अभ्यासियों की सरलता के लिए नवीन कमंग्रन्थ की रचना में यह ध्यान रक्खा है कि किष्प्रयोजन शब्द-विस्तार न हो और बिषय पूरा अवि । इसी लिए गति आदि मार्गण में गुणस्थानों की संख्या का निर्देश जैसा प्राचीन कर्मग्रन्थ में बन्ध-स्वामित्त के कथन से अलग किया है नवीन . कर्मप्रन्थ में वैसा नहीं किया है; किन्तु यथा-संभव गुणस्थानों को लेकर बन्ध-स्वामित्व दिखाया है, जिस से उन की संख्या को अभ्यासी आप ही जान लेबे । नवीन कर्मप्रन्थ है. संक्षिप्त, पर वह इतना पूरा है कि इस के अभ्यासी थोड़े ही में विषय को जान कर प्राचीन बन्ध-स्वामित्व को विना टीका-टिप्पणी की मद्द्‌ के जान सकते हैं. इसीसे पठन-पाठन मेँ नवीन तीसरे का प्रचार है । गोम्मटसार के साथ तुलना- तीसरे कमंप्रन्थ का विषय कर्मकाएड में है, पर उस की वर्णन-शैली कुछ भिन्न हे । इस के सिवाय तीसरे कर्मभन्थ में जो जो विषय नीं है ओर दूसरे ॐे सम्बन्ध की दृष्टि से जिस जिस विषय का वणन करना पढ़ने वालों के लिए लाभदायक दै वह सब कमंकारड में है । तीसरे कर्मप्रन्थ में मार्गणाओं में केवल बन्ध-स्वामित्त वर्णित है परन्तु कमंकाएड में बन्ध-खामित्व के अतिरिक्त मार्गणाओं को लेकर उदय-खामित्व, उदीरणा-खामित्व, ओर सत्ता-खामित्व भी




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