भारत : तथ्य और आंकड़े | Bharat Tathya Aur Ankade

Bharat Tathya Aur Ankade by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
इतिहास १५ ब्रढ कर मगध (बर्तमान बिहार ) के शक्तिक्षाली नद-साम्राज्य पर श्राकषमण करने से साफ इन्कार कर दिया। इस पर विवश्ञ होकर सिकन्दर को बहा से लौटना पडा । मार्ग में अनेक छोटी-छोटी रबतल्त्र जातियों और नगरो के साथ संघर्ष करते हुए वह सिन्धु के मार्ग से लौट गया। मौये-वंश : सम्राट अशोक सिकन्दर के लौटते ही भारत में एक अत्यन्त शक्तिशाली मौरये- साम्राज्य का उदय हुआझा, जिसका सस्थापक मगघ क्रं नदो का नाहा करनेवाला चन्द्रगुप्त मौर्य था । चन्द्रगुप्त मौर्य ने न कंवल उत्तर-भारत को हस्तगत किया तथा सिल्यूकस निकेटर को (ई० पू० लगभग ३०४ में ) काबुल, हेरात, कन्दहार और बलूचिस्तान, इन चार प्रान्तों का समपेण करने पर विवश किया, बल्कि सम्भवत: दक्षिण मे भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया । चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र भ्रशोक ने भी बड़े विशाल साम्राज्य पर झासन किया, जिसका विस्तार काबुल नदी से ब्रह्मपुत्र नदरी तक तथा श्रीनगर से श्रीरगपट्टम तक था। मौयेकानीन जीवन तथा भासन-व्यवस्था का बड़ा विशद वर्णन चाणक्य-विरचित अर्थशास्त्र' मे मिलता है। ऐसा विष्वास किया जाता हटके चाणक्य चन्द्रगुप्त का य 1 मौर्य-साम्राज्य के प्रमएक विशाल सेना थी । सम्राट्‌ साम्राज्य की केन्द्र और प्रान था । वह शासन-कार्य मन्त्रिपरिषद्‌ की सहायता से तथा साम्राज्य के विविध अधिकरण अनेक उच्च पदस्थ राजपुरुषो के प्रबन्ध में थे । रा चन्द्रगप्न के पौत्र क कं क. सार के महान्‌ सम्राटो में की जाती हैं। वह स्वय तो महान था ही, उसने अपने देश को भी महानता प्रदान की । अपनी दिग्विजय मे उसने कलिग देश (वतमान उड़ीसा) पर आक्रमण किया, किन्तु युद्ध की बीभत्सता से उसके हृदय पर गहरा श्राघात पहुचा और अन्तत* खन-खराबे से विरक्‍त होकर वह बुद्ध-द्वारा प्रतिपादित अहिसा के सिद्धातो का और 'मज््िम-प्रतिपदा' का अनुगामी हुआ । उससे दिग्विजय' के स्थान पर 'घर्मविजय' को अपना ध्येय बना लिया । इसके बाद अशोक ने अपने साम्राज्य के विभिन्न भागो तथा साम्राज्य से बाहर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now