अपरा | Apra

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Apra  by Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोती थी, जानें कहो कैसे प्रिय-आगमन वह * नायक ने चूम कंपोल, डोल उठी वल्लरी की लडी जैसे दिडोल । इस पर भी जांगी नही, चुक-कझमा माँगी नही, निद्रालस बक्मि विशाल नेत्र मूंदे रही-- 'किम्वा मतबाली थी यौवन की मदिरा पिये कौन कहें * 'तिदेंय उस नायक ने निपट निठुराई की, कि झोको की झडियो से सुन्दर सुकूमार देह सारी झकझोर डाली, मसल दिये गोरे कपोल गोल; चोक पड़ी युवत्ती, श्रकित चितवन मिज चारो ओर फेर, हेर प्यारे को सेज पास हँसी, खिली खेल रग प्यारे संग । ११६ ई०




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