शुद्धि और संगठन | Shuddhi Aur Sangathan

Shuddhi Aur Sangathan by जनमेजय विद्यालंकार - Janmejay Vidhyalakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ ९७ ) (२) उनकी बल्यै किदे खगाय अकबर तथा दाय शिकोह जेसे सुसल्सान सी क्रिस पकार से दिलोजान से हिम्दुधम के मोश्व को मानते थे । (३) चाईविरु आर रान कतै ऊरूम्नष क्ाञ१ हे प्रभाव কী ইহা জী सत्य शास्त्रों की घेशानिफ सच्चाइयां छुना कर उनके दिलो से निकाल द्‌ । (४) क्षपने दस ओर ध्रेमपूर्ण ब्यधह्ाार से ईसाई घुसछमानों के दिला को जीनल, ताक वे इसलाम और ईल्लाइयत के खोखले-पने फ्ो तथा वे दिक धर्म की श्रेएता को दृदय से स्वीकार करे | (५) दद्ध होकर हिंदु बनने के लिये सदा उनसे प्रेमपूयंक प्रबवद्ठ अनुरोध किया कर । | (६ ) एवर हो शुद्ध करने की विधियां लिखी हू छन में से किसी से ४न्दे शुद्ध करने में तमिक भी दिवकिलखाइट व विलम्ब मव कर । विधमियों करों शद्ध करना इस समय हमारा सदसे मुणष्य कतव्थ है । (७ ) शद्ध करने के पश्चात्‌ ख़ब रोग 3४ सक्रे दाथ का बांटा डुआ अन्न आदि खाचे | संस्कार करवाने बालो और दशक मदाश्यों फो चाहिये कि एसके सामने हो उसकते बंटी छुई बल्तु को अधष्य स्वा कर उसका उत्साह बढ़ाव । ६८ ) बष्ोपवीत को धर वीन शास्वकारों ने विद्या पढ़ने वाले आयो का দঃ का माना है, इस लिप्रे जो शुद्ध होने




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