योगेश्वर कृष्णा | Yogeshwar Krishna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
397
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७)
एक घुमाव से हाथों हाथ दे डाला । शिशुपाल सुदरान के एक
ही बार में खेत रहा ।
यज्ञ हो गया परन्तु राजाओं का विरोध चाहे उस समय
के लिए दब गया हो, शान्त नहीं हुआ । उलटा तीत्र हो उठा ।
दुर्याधन की पाण्डवों से पुरानी लाग थी। उसने असन््तुष्
राजाओं से मिलकर षड्यन्त्र किया । एक सभा रची । उसमें
पारड्वों को निमन्त्रित कर युधिष्ठिर श्रौर शङ्कनिमे जुएका
मेच कावा द्विया । युधिष्टिर अपना साम्राज्य, अपने भाई,
यहां तक कि अपनी धमपत्नी तक को हार गया। जुशा
तो ज़ाहिर का बहाना था। वास्तव में साम्राज्य उसी समय
शकुनि के दाव पर हारा जा चुका था जब श्रीकृष्ण को
अधघ-प्रदान हुआ धा ओर शिशुपाल का वध क्रिया
गया था ।
पाण्डव बारह वर्ष के लिए बनवास और एक वर्ष के
लिए अज्ञात-व|स में चले गये | इससे पू्वे भी वे वनवास कर
चुके थे । उस वनवास की समाप्ति द्रौपदी के विवाह पर हुई
थी और उसका फल द्रपद् की मेन्नी था। इस बार के
वनवास का अन्त अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में हुआ ।
इससे विगट ऐसा सम्पत्तिशाली राष्ट्र पाए्डवों की पीठ पर
हो गया । कौरवों से राज्य छौटाने वी मन्त्रणा वहीं मत्स्यराज
विराट की सभा ही में हुई ।
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